________________ ताण / भावेण भुवणनाहं, वंदेउं ददुरो वि संचलिओ। मरिऊण अंतराले, नियनामको सुरो जाओ // 15 // विरयाविरयसहोदर, उदगस्स भरेण भरिअसरिआए / भणियाए साविआए, दिनो मग्गु त्ति भाववसा // 16 // सिरिचंडरुद्दगुरुणा, ताडिज्जंतो वि दंडघाएणं / तक्कालं तस्सीसो, सुहलेसो केवली जाओ // 17 // जं न हु भणिओ बंधो, जीवस्स वहं वि समिइगुत्ताणं / भावो तत्थ पमाणं, न पमाणं कायवावारो // 18 // भाव च्चिय परमत्थो, भावो धम्मस्स साहगो भणिओ / सम्मत्तस्स वि बीअं, भाव च्चिय बिति जगगुरुणो // 19 // किं बहुणा भणिएणं, तत्तं निसुणेह भो ! महासत्ता ! मुक्खसुहबीयभूओ, जीवाण सुहावहो भावो // 20 // इय दाणसीलतवभावणाओ, जो कुणइ सत्तिभत्तिपरो / देविंदविंदमहिअं, अइरा सो लहइ सिद्धिसुहं // 21 // पू.आ. श्रीरत्नसिंहसूरिविरचितम् // उपदेशकुलकम् // चिंतसु उवायमेयं संसारे गरुयमोहनियलाओ / चिरकालसेवियाओ रे मुच्चसि इह कहं ? जीव ! मोहविसं अवणेउं गुरुदेसणमंतसंगमवसाओ / परिभावितो तत्तं उवएसामयरसं पियसु कुणसु दयं भणसु पियं मुंच परधणं चएसु परमहिलं / / इच्छं निरंभिऊणं इंदियपसरं तह जिणेसु // 2 // // 3 // 1