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________________ // 72 // // 73 // // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // जनेभ्यो वाक्कृतः स्पन्दो, मनसश्चित्रविभ्रमाः / भवन्ति तस्मात्संसर्ग, जनैर्योगी ततस्त्यजेत् ग्रामोऽरण्यमिति द्वेधा, निवासोऽनात्मदर्शिनाम् / दृष्टात्मनां निवासस्तु, विविक्तात्मैव निश्चलः देहान्तरगते/जं, देहेऽस्मिन्नात्मभावना। बीजं विदेहनिष्पतेरात्मन्येवात्मभावना नयत्यात्मानमात्मैव, जन्मनिर्वाणमेव वा। गुरुरात्मात्मनस्तस्मानान्योऽस्ति परमार्थतः दृढात्मबुद्धिर्देहादावुत्पश्यन्नाशमात्मनः / मित्रादिभिर्वियोगं च, बिभेति मरणाद् भृशम् आत्मन्येवात्मधीरन्यां, शरीरगतिमात्मनः / मन्यते निर्भयं त्यक्त्वा, वस्त्रं वस्त्रान्तरग्रहम् व्यवहारे सुषुप्तो यः स जागांत्मगोचरे / जागति व्यवहारेऽस्मिन्सुषुप्तश्चात्मगोचरे आत्मानमन्तरे दृष्ट्वा, दृष्ट्वा देहादिकं बहिः / / तयोरन्तरविज्ञानादभ्यासादच्युतो भवेत् पूर्वं दृष्टात्मतत्त्वस्य, विभात्युन्मत्तवज्जगत् / स्वभ्यस्तात्मधियः पश्चात्काष्ठपाषाणरूपवत् . शृण्वन्नप्यन्यतः कामं, वदन्नपि कलेवरात् / नात्मानं भावयेद्भिनं, यावत्तावन मोक्षभाक् तथैव भावयेद्देहाद्, व्यावृत्त्यात्मानमात्मनि / यथा न पुनरात्मानं, देहे स्वप्नेऽपि योजयेत् अपुण्यमव्रतैः पुण्यं, व्रतैर्मोक्षस्तयोर्व्ययः / अव्रतानीव मोक्षार्थी, व्रतान्यपि ततस्त्यजेत् 155 // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 //
SR No.004456
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages314
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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