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________________ // 912 // // 913 // // 914 // // 915 // // 916 // // 917 // एअंच उत्तमं खलु निव्वाणपसाहणं जिणा बिति / जं नाणदंसणाण.वि फलमेअंचेव निर्टि एएण उ रहिआई निच्छयओ नेअ ताई ताई पि। सफलस्स साहगत्ता पुव्वायरिआ तहा चाहु निच्छयनअस्स चरणायविघाए नाणदंसणवहो वि। ववहारस्स उ चरणे हयम्मि भयणा उ सेसाणं णणु दंसणस्स सुत्ते पाहन्नं जुत्तिओ जओ भणि। सिझंति चरणरहिआ दंसणरहिआ न सिझंति एवं दंसणमेव उ निव्वाणपसाहगं इमं पत्तं / निअमेण जओ इमिणा इमस्स तब्भावभावित्तं एअस्स हेउभावो जह दीणारस्स भूइभावम्मि। इअरेअरभावाओ न केवलाणंतरत्तेणं इअ दंसणऽप्पमाया सुद्धीओ सावगाइसंपत्ती / न उ दंसणमित्ताओ मोक्खो त्ति जओ सुए भणियं सम्मत्तम्मि उ लद्धे पलिअपुहुत्तेण सावओ होज्जा / चरणोवसमखयाणं सागर संखंतरा होति . एवं अप्परिवडिए सम्मत्ते देवमणुअजम्मेसुं। अन्नयरसेढिवज्जं एगभवेणं व सव्वाइं . नेवं चरणाभावे मोक्ख त्ति पडुच्च भावचरणं तु / दव्वचरणम्मि भयणा सोमाईणं अभावाओ तेसि पि भावचरणं तहाविहं दव्वचरणपुव्वं तु / अन्नभवाविक्खाए विनेअं उत्तमत्तेणं तह चरमसरीरत्तं अणेगभवकुसलजोगओ निअमा। पाविज्जइ जं मोहो अणाइमंतो त्ति दुविजओ // 918 // // 919 // // 920 // // 921 // . // 922 // // 923 //
SR No.004452
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages310
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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