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________________ // 1560 // // 1561 / / // 1562 // // 1563 // // 1564 // // 1565 // अच्चंतिअसुहहेऊ एअं अण्णेसि णिअमओ चेव। परिणमइ अप्पणो वि हु कीरंतं हंदि एमेव गुरुसंजमजोगो वि हु विण्णेओ सपरसंजमो जत्थ / सम्मं पवड्डमाणो थेरविहारे अ सो होइ अच्चतमप्पमाओ वि भावओ एस होइ णायव्वो। जं सुहभावेण सया सम्म अण्णेसि तक्करणं जइ एवं कीस मुणी थेरविहारं विहाय गीआ वि? / पडिवज्जंति इमं नणु कालोचिअमणसणसमाणं तक्काले उचिअस्सा आणा आराहणा पहाणेसा / इहरा उ आयहाणी निष्फलसत्तिक्खया णेआ अहवाऽऽणाभंगाओं एसो अहिगगुणसाहणसहस्स / हीणकरणेण आणा सत्तीऍ सया वि जइअव्वं एत्तो अ इमं एवं जं दसपुव्वीण सुव्वई सुत्ते / . एअस्स पडिस्सेहो तयण्णहा अहिगगुणभावा एवं तत्तं नाउं विसेसओ एव सत्तिरहिएहिं / सपरुवगारे जत्तो कायव्वो अप्पमत्तेहिं सो य ण थेरविहारं मोत्तुं अन्नत्थ होइ सुद्धो उ। एत्तो च्चिअ पडिसिद्धो अजायसम्मत्तकप्पो अ अज्जाओऽगीआणं असमत्तो पणगसत्तगा हिट्ठा / उउवासासुं भणिओ जहक्कमं वीअरागेहि पडिसिद्धवज्जगाणं थेरविहारो अ होइ सुद्धो त्ति / इहरा आणाभंगो संसारपवड्ढणो णियमा कयमित्थ पसंगेणं सविसयणिअया पहाणया एवं / दट्ठव्वा बुद्धिमया गओ अ अब्भुज्जयविहारो // 1566 // // 1567 // // 1568 // // 1569 // // 1570 // // 1571 // 131
SR No.004452
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages310
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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