________________ भोगो अणेसणीएऽसमियत्तं भावणाणऽभावणया / जहसत्तिं चाकरणं पडिमाणं पडि (अभि) ग्गहाणं च // 727 / / एते इत्थऽइयारा असद्दहणादी य गुरुयभावाणं / आभोगाणाभोगादिसेविया तह य आहेणं // 728 // संवेगपरं- चित्तं काऊणं तेहिं तेहिं. सुत्तेहिं / . सल्लाणुद्धरणविवागदंसगादीहिं आलोए // 729 // सम्मं दुच्चरितस्सा परसक्खिगमप्पगासणं जं तु / एयमिह भावसल्लं पण्णत्तं वीयरागेहिं . // 730 // ण वि तं सत्थं व विसं दुप्पउत्तो व कुणति वेतालो। जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमादिओ कुद्धो // 731 // जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तिमट्ठकालम्मि / दुल्लहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ' // 732 // आलोयणं अदाउं सति अण्णम्मि वि तहप्पणो दाउं / जे वि हु करेंति सोहि ते वि ससल्ला विणिद्दिट्ठा. * // 733 // किरियण्णुणा वि सम्मं पि रोहिओ जह वणो ससल्लो उ / होइ अपत्थो एवं अवराहवणो वि विण्णेओ // 734 // सल्लुद्धरणनिमित्तं गीयस्सन्नेसणा उ उक्कोसा। जोयणसयाई सत्त उ बारस वरिसाइं कायव्वा // 735 // मरिउं ससल्लमरणं संसाराडविमहाकवि (डि)लम्मि। सुचिरं भमंति जीवा अणोरपारम्मि ओइण्णा // 736 // उद्धरियसव्वसल्ला तित्थगराणाएँ सुत्थिया जीवा / भवसयकयाई खविउं पावाइं गया सिवं थामं // 737 // सल्लुद्धरणं च इमं तिलोगबंधूहिं दंसियं सम्मं / / अवितहमारोग्गफलं धण्णो हं जेणिमं णायं // 738 // 26