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________________ चतुःशरणप्रकीर्णकम् खण्डः-३ बाला. चउदसपूर्वधारी, दसपूर्वधारी, नवपूर्वधारी, बार अंगना भणनार, इग्यार अंगना भणनार जेअ कहेतां वली, जिनकल्पि, यथालंदकल्पना धणी, परिहारविशुद्ध चारित्रना धणी / / 33 / / खीरासव महुआसव संभिन्नस्सोय कुट्ठबुद्धी य / ... चारण-वेउब्वि-पयाणुसारिणो साहुणो सरणं / / 34 / / टि. सं० लब्धिः एकेन्द्रियेणाऽपि सर्वेन्द्रियार्थसाधिनी / / 34 / / अव. क्षीराश्रवमधुकाश्रवसम्भिन्नश्रोतोलब्धि'ष्टस्फेटने बुद्धिः / चारणलब्धिवैक्रियलब्धयः __ पदानु-सारिणो लब्धिवन्तः / एवंविधाः साधवः शरणं भूयात् / / 34 / / . . बाला. जेहनो दूध सरिखो वचनरस हुइ अथवा जेहनें पात्रे पडिआ अन्ननो दूध सरिखो रस होइ ते खीराश्रव कहीइ, जेहनो मधु सरिखो वचनरस होइ अथवा जेहनें पात्रे पडिया अन्ननो मधु सरिखो सवाद हुइ ते मधुआश्रव कहीयै / जे एकइंद्रीयइं अथवा अवयवइं देखें संभिन्नश्रोतलब्धिवंता / संभिन्न श्रोतलब्धिवंता कोष्ठबुद्धिना धणी जंघाचारण विद्याचारण वैक्रियलब्धिना धणी / एक पद आवडे जेहनें अनेक पद आगिला पाछिला आवडे ते पदानुसारी कहीइ एहवा श्रीसाधु मुजनें सरण होजो / / 34 / / . जेणइ परिहारविशुध्ध तप आचरयो हवइ ते पासइं अथवा तीर्थंकर पासई ए तप लीधो कल्पै / ए पूरो थइ कोइ जिनकल्प आदरें / कोइ पाछा गच्छमां आवइ / नव यति गच्छथी अलगा थइ परिहारविशुध्ध तप आदरे / ते यति जघन्यथी नोमा पूर्व त्रीजूं वस्तु भण्या हुवै / उत्कर्षथी उणां दस पूर्व भण्यां हुई / ते नव यती मांहि च्यार परिहारविशुध्ध तप करें / च्यार वियावच्च करे / एक आचार्य थाइ / ते परिहारतपना करणहार उनाले जघन्यतो चउत्थ मध्यम छठ उत्कृष्टो अठम / सीआले जघन्य तो छठ मध्यम अठम उत्कृष्टो दशम / वरसाले जघन्य तो अठम मध्यम तो दशम उत्कृष्टो दुवालस तप करें / पारणे निरलेप आंबिल करे / वेयावची तथा आचार्य नित्ये निरलेप आंबिल करे / इम छ मास थयां पछी तपना करणहार वेयावच करे ते वेयावची तप करें ते छ मास पूरा थया पछी आचार्य तप करे / आठे वेयावच करइ / इम अढार मासनो तप तेहनूं चारित्र ते परिहारविशुद्ध चारित्र कहीइ / जेतली वेलाइ भीनी हाथनी रेखा सूकाइ ते जघन्य लंद कहीये / अने पाँच दिवसनो उत्कृष्ट लंद ते लंदकल्पानं अणअतीकमीनइं प्रवर्त्तइ ते यथालंदकल्पी कहीइ / ते यथालंदकल्प पाँच यतिनो समूदाय आदरे / एकेकी वीथाइ पाँच पाँच दिन भमइ / . / / संभिन्नसोयेत्यस्य पदस्यार्थो विस्तारेण / / आलंबइ देखइ / इम पांच इंद्रीयना विषय जाणे / अथवा चक्रवर्तिनां कटकना कोलाहल मांहि आ अमुकनो शब्द इम जे विगतइ शब्द जांणइ ते सांभिन्नश्रोतलब्धि कहीइ / जिम कोठा माहिं धाल्युं धान
SR No.004445
Book TitleAgam Chatusharan Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size12 MB
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