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________________ प्रास्ताविक छेट-सूत्र-आगम एवं बृहत्कल्पसूत्र भारतीय संस्कृति की दो मुख्य धाराएँ हैं-एक श्रमण संस्कृति और दूसरी ब्राह्मण संस्कृति / ब्राह्मण संस्कृति गृहस्थाश्रम को विशेष महत्त्व देती है। उसीको ज्येष्ठ श्रेष्ठ मानकर उसकी गुण गाथा के गीत गाती हैं / जबकी श्रमण संस्कृति ने श्रमण जीवन को ही अधिकतम महत्त्व दिया है / उसे ही सर्वश्रेष्ठ माना है / यद्यपि जैन धर्म में दो मार्गों का सूचन भी हुआ है / एक अगार धर्म-गृहस्थधर्म और दूसरा अणगार धर्म यानी श्रमणधर्म / अगारधर्म का सन्निष्ठ भाव से पालन करनेवाला गृहस्थ अधिक से अधिक देव की उच्च गति को ही प्राप्त कर सकता है, किन्तु सर्व कर्म विमुक्त होकर मोक्ष को नहीं / जबकि श्रमण अपनी उच्चतम साधना द्वारा सर्व कर्मविमुक्ति रूप मुक्ति को = मोक्ष को प्राप्त कर सकता है / यद्यपि मुक्ति तक पहुँचानेवाला श्रमणाचार अत्यधिक कठोर है दुष्कर है। इस दुष्कर पथ के पथिक श्रमणों का आध्यात्मिक विकासक्रम में छठा स्थान है। इस छठे स्थान से यदि वह ऊर्ध्वमुखी विकास करता रहे तो अन्तमें चौदहवें गुणस्थान की भव्य भूमिका में पहुँच कर विमुक्त हो जाता है / जैन धर्म आचार प्रधान धर्म है। आचार प्रधान जिन प्रवचन के प्रवक्ता आप्त-वीतराग पुरुष माने गये हैं / उनके द्वारा निरूपित आगम वर्तमान काल में 45 विभागों में विभक्त हैं। आचारांगादि ग्यारह अंग, औपपातिक आदि बारह उपांग, आतुरप्रत्याख्यानादि दस प्रकीर्णक, आवश्यकादि छह मूल सूत्र, एवं निशीथ आदि छह छेद सूत्र / कुल 45 आगम है / इन आगमों में संख्याविषयक मतभेद अवश्य है किन्तु ये सभी आगम ज्ञान के अक्षय कोष है / महासागर के समान गहन है। इनमें केवल अध्यात्म और वैराग्य का ही उपदेश नहीं है किन्तु धर्म, दर्शन, नीति, संस्कृति, सभ्यता, भूगोल, खगोल, गणित, आत्मा, कर्म, लेश्या, इतिहास, संगीत, आयुर्वेद, नाटक आदि आदि जीवन के हर पहलू को छूने वाले विचार यत्र तत्र बिखरे पड़े हैं। इन आगमों में छेद सूत्र का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये जैन श्रमणाचार का विश्लेषण
SR No.004440
Book TitleBruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2008
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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