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________________ 1801 -8-8-1(240) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन %3 श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 8 उद्देशक - 8 उत्तममरणविधिः // सातवा उद्देशक कहा... अब आठवे उद्देशक का प्रारंभ करते हैं... यहां परस्पर इस प्रकार अभिसंबंध है... जैसे कि- यहां सातवे उद्देशकमें कहा था कि- रोग आदि परिस्थिति में कालपर्याय याने आयुष्यका अंतकाल निकट आने पर साधु भक्तपरिज्ञा इंगितमरण और पादपोपगमन में से कोई भी एक प्रकार के अनशनका स्वीकार करे इत्यादि... अब यहां आठवे उद्देशकमें रोगके अभावमें अनुक्रमसे कालपर्याय याने आयुष्यके अंतकालमें करने योग्य विधिविधान कहतें हैं... अतः इस अभिसंबंधसे आये हुए इस आठवे उद्देशकका यह प्रथम सूत्र है... I सूत्र // 1 // // 240 // 1-8-8-1 अणुपुव्वेण विमोहाइं जाइं धीरा समासज्ज। वसुमंतो मइमंतो सव्वं णच्चा अणेलिसं // 240 // . // संस्कृत-छाया : आनुपूर्व्या विमोहानि यानि धीरा समासाद्य। वसुमन्त: मतिमन्तः सर्वं ज्ञात्वा अनन्यसद्दशम् // 240 // III सूत्रार्थ : ___अनशन करने के लिए जो संलेखना की विधि बताई गई है, उसके अनुसार धैर्यवान, ज्ञान संपन्न, संयम निष्ठ एवं हेयोपादेय का परिज्ञाता मुनि मोह से रहित होकर पंडित मरण को प्राप्त करे। IV टीका-अनुवाद : अनुक्रमसे याने प्रथम प्रव्रज्या (दीक्षा) ग्रहण, उसके बाद शिक्षा, सूत्र एवं अर्थका ग्रहण-कार्य पूर्ण होने पर एकाकि-विहारकी प्रतिमा याने अभिग्रह... अथवा तो अनुक्रमसे संलेखनाके विकृष्ट तप आदि चार प्रकार... याने जिस तपश्चर्यासे मोहका विनाश हो... तथा . भक्तपरिज्ञा, इंगितमरण, और पादपोपगमन अनशनविधि यथाक्रमसे प्राप्त होने पर मोहका विनाश होता है... ऐसे प्रतिमाधारी साधु धीर याने अक्षोभ्य होते है... तथा वसु याने द्रव्य अर्थात् संयमवाले... तथा मति याने हेय तथा उपादेय का अनुक्रमसे त्याग तथा स्वीकारके
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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