________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 5 - 2 - 4 (162) 393 प्रश्न- यदि इस प्रकार अल्प परिग्रह से भी प्राणी परिग्रहवाले होते हैं तो फिर करपात्र याने . हाथ में हि भोजन लेनेवाले सरजस्क बोटिक आदि दिगंबर साधु अपरिग्रही हैं ने ? क्योंकि- उन्हे अल्पादि प्रकार के परिग्रह का हि अभाव है... उत्तर- ना ! ऐसा नहि है... क्योंकि- उन्हें अल्पादि प्रकार के परिग्रह का अभाव असिद्ध है... वह इस प्रकार- सरजस्क “अस्थि" आदि परिग्रहवाले बोटिक-दिगंबरों को पिंछी आदि का परिग्रह है, और शरीर आहारादि का आंतरिक परिग्रह भी है... यदि वे दिगंबर कहे कि- यह पिंछी आदि धर्म के उपकरण हैं अत: दोष नहि है... तब तो स्थविर कल्पवाले श्वेतांबरों को भी धर्म के उपकरण स्वरूप वस्त्र-पात्रादि होते हि हैं... अतः दिगंबर अपरिग्रही है, ऐसे आग्रह से क्या फायदा ? अल्पादि परिग्रह से परिग्रहवाले होते हुए भी अपरिग्रहवालें हैं ऐसे अभिमानी दिगंबरों को आहार एवं शरीर आदि भी महान् अनर्थ के लिये होतें हैं; यह बात अब सूत्र से हि कहतें हैं- अल्पादि परिग्रह से परिग्रहवाले कितनेक दिगंबरादि मनुष्यों को वह परिग्रह नरकादि में गमन का कारण होता है, अथवा सभी प्राणीओं को अविश्वास के कारण होने से महाभय स्वरूप है... क्योंकि- परिग्रह की यह प्रकृति याने स्वभाव हि है... जैसे कि- परिग्रहवाले सभी से डरते रहते हैं... अथवा- दिगंबरों को शरीर एवं आहारादिक का थोडा भी परिग्रह महाभय का कारण बनता है... जैसे कि- पात्र एवं वस्त्रादि धर्मोपकरण के अभाव में वे जब आहार के लिये गृहस्थों के घर जाते हैं तब सम्यक् पात्रादि साधन के अभाव में अविधि से अशुद्ध आहारादिक का भोजन कर्मबंध जनित महाभयं को प्राप्त करते हैं तथा उनका संपूर्ण शरीर वस्त्रादि के अभाव में अतिशय बिभत्स दीखने से अन्य लोगों को महाभय उत्पन्न करता है, क्योंकि- उनके पास निर्दोष विधि का हि अभाव है... थोडा भी परिग्रह महाभय का कारण होता है, इसलिये कहते हैं कि- असंयत लोगों का थोडा भी धन-द्रव्य, अथवा तो असंयत लोगों का वृत्त याने आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह की उत्कट संज्ञा महाभय के लिये होती है; अतः ज्ञ-परिज्ञा से जानकर एवं प्रत्याख्यान परिज्ञा से उन संज्ञाओं का त्याग करे... इस महाभयजनक अल्पादि प्रकार के परिग्रह अथवा शरीर एवं आहारादि में मूर्छा नहि करनेवाले श्रमण-साधु को परिग्रहजनित महाभय नहि होता... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में भय का कारण बताते हुए कहा गया है कि- संसार में जितने भी भय हैं, वे सभी परिग्रही व्यक्ति को हैं। जब मनुष्य वस्तु-पदार्थ एवं शरीर पर आसक्ति एवं ममत्वभाव रखता है, तो उसे कई चिन्ताएं लग जाती हैं। वह रात-दिन चिन्तित, सशंक एवं भयभीत सा रहता है। किन्तुः अपरिग्रही मुनि को इस तरह की चिन्ता एवं भय नहीं होता।