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________________ महापुरिसचरियं' अक महान कृति छे. अनी रचना दश हजार श्लोक प्रमाणनी छे. अमां चोपन महापुरुषोनां शलाका पुरुषोनां चरित्र आपवामां आव्यां छे. आ ग्रंथ प्रकाशित थयेलो छे अनो गुजराती अनुवाद पण प्रकाशित थयेलो छे. कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्ये 'त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित्र' नामना महान व्यंथनी संस्कृत भाषामां जे रचना करी छे अमां अमणे श्री शीलांकाचार्यना आ प्राकृत ग्रंथनो आधार लीधो छे. .. श्री शीलांकाचार्ये आचारांग सूत्रनी टीका वि. स. 933 (शक संवत 799) मां लखी हती. आ टीका लखवानुं ओक प्रयोजन ते श्री भद्रबाहुस्वामीनी 'आचारांग नियुक्ति' पछी आर्य गंधहस्तिो आचारांग उपर जे टीका लखी हती ते बहु गहन हती, माटे सरळ भाषामां अर्थनी विशदता साथे ओमणे आ विस्तृत टीकानी रचना करी हती. आ वातनो पोते ज पोतानी टीकामां उल्लेख नीचे प्रमाणे को छ : शस्त्रपरिज्ञाविवरणमतिबहुगहनं च गंधहस्तिकृतम् / तस्मात् सुखबोधार्थं गुलाम्यहमञ्जसा सारम् / / आर्य गंधहस्ति ते ज श्री सिद्धसेन दिवाकर ओम पण मनाय छे. आर्य गंधहस्तिो आचारांग सूत्र पर लखेलुं विवरण अत्यंत गहन, विद्वद्भोग्य होवू जोइओ. ओ क्यांय मळतुं नथी अनो अर्थ ओ थयो के ओ लुप्त थइ गयेनु होवू जोइओ. अटले श्री शीलांकाचार्ये समजाय अबुं (सुखबोधार्थ) विवरण लख्युं छे. आ टीकाना अभ्यासीओ कहे छे के श्री शीलांकाचार्यनी 'आचारांग सूत्र' नी टीका वांचतां बहु प्रसन्नता अनुभवाय छे. अने अर्थबोध त्वरित थाय छे. श्री शीलांकाचार्ये पोताना श्लोकमां आर्य गंधहस्तिनी टीकाना फक्त 'शस्त्रंपरिज्ञा' अध्ययननो उल्लेख कयों छे. अटले कदाच ओवं पण बन्यं होय के श्री शीलांकाचार्यना समय सधीमां आर्य गंधहस्तिो रचेलां बीजा अध्ययनोनुं विवरण छिन्न भिन्न थइ गयुं होय. काळे श्रुतपरंपरा चालती हती परंतु त्यार पछीना काळमां कठिन ग्रंथ याद राखनारा ओछा ने ओछा थता गया हशे. ओक मत अवो छे के श्री शीलांकाचार्ये अगियारे अंग उपर टीका लखी हती, परंतु अमांथी मात्र 'आचारांग सूत्र' अने 'सूत्र कृतांग सूत्र' उपरनी टीका ज उपलब्ध छे. बाकीनी टीकाओ उपलब्ध छे ओ पण हजारो श्लोक प्रमाण छे आटली मोटी रचना करवानी होय त्यारे आचार्य महाराजने संदर्भो, लेखन वगेरेनी दृष्टिले बीजानी सहाय लेवी पडे. श्री शीलांकाचार्ये ओ माटे श्री वाहरि गणिनी सहाय लीधी हती ओवो पोते ज 'सूत्र कृतांग' नी टीकामां उल्लेख को छे आ वाहरि गणि ते अमना ज कोइ समर्थ शिष्य हशे अम अनुमान थाय छे. श्री शीलांकाचार्यनी आ टीका अक हजार वर्षथी सचवाइ रही छे अने 'आचारांग सूत्र' . ना अध्ययनमां, अनी वाचनामां सतत ओनो उपयोग थतो रह्यो छे. ओ ज अनी मल्यवत्ता दशवि
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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