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________________ అఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅడి estetisesti esteties 6) जन्मोत्सव- नौ माह व्यतीत होने पर, चैत्र कृष्ण अष्टमी की ( 1) मध्य रात्री में माता मरुदेवी ने एक युगल सन्तान को जन्म दिया। 2 प्रभु का जन्म हुआ। दसों दिशाएं आलोकित हो उठीं। तीनों लोक आह्लादित हो उठे। नारकीय प्राणी भी क्षण-भर के लिए पीड़ामुक्त हो गए थे। शीतल-सुगन्धित वायु ने ठुमक-ठुमक कर नृत्य प्रारंभ कर दिया था। 3. चौंसठ इन्द्रों और असंख्य देवताओं ने सम्मिलित होकर प्रभु र का जन्म-महोत्सव मनाया। महाराज शकेन्द्र ने माता मरुदेवी की है। निद्राधीन करके प्रभु को अपनी गोद में उठा लिया। वे उसे सुमेरू 2) पर्वत के पाण्डुक वन में ले गए। वहां पर प्रभु को क्षीरोदधि आदि समुद्रों के पवित्र जल से स्नान कराया गया। देवी-देवताओं ने अपूर्व उत्सव रचाए / देवांगनाओं ने नृत्य किए। तत्पश्चात् इन्द्र ने 5 २प्रभु को माता मरुदेवी के पास पहुंचा दिया। दूसरे दिन, प्रातः हजारों यौगलिक एकत्र हुए। जन्मोत्सव 5 विधि से अपरिचित यौगलिकों ने देवों का अनुसरण करते हुए प्रथम र बार इस शिशु का जन्मोत्सव मनाया। सभी के मन प्रसन्न थे और 5 उज्जवल भविष्य की कामना से भरे थे। नामकरण - प्रभु का नामकरण महोत्सव मनाया गया। बड़ी संख्या में यौगलिक एकत्रित हुए। महाराज नाभिराय ने कहा- इस पुण्यवान् शिशु के गर्भ में आते ही इसकी माता ने सर्वप्रथम वृषभ का स्वप्न देखा था। इसके साथ ही इस शिशु के उरू प्रदेश में वृषभ का चिह्न भी अंकित है अतः इसे वृषभ नाम से पुकारा जाए। शिशु के 2) साथ जन्मी कन्या को सुमंगला नाम प्रदान किया गया। प्रभु की इक्षुप्रियता तथा वंश उत्पत्ति- प्रभु ऋषभदेव से पूर्व 8 तक, वंश या जातियों का प्रचलन नहीं था। एक बार प्रभु एक वर्ष के थे वे अपने पिता नाभिराय की गोद में बालक्रीड़ा कर रहे थे। इस toestiese toetusest tegen गया।
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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