SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लक्ष्य है। इसी बात को आचारांगसूत्र में प्रकारांतर से इस प्रकार कहा गया है कि 'आर्यजन समभाव को धर्म कहते हैं भारतीय धर्मों के अनुसार साधना का अध और इति दोनों ही 'समत्व' या समता है। समत्व से तात्पर्य है अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में चित्तवृत्ति में तनाव, विचलन या विक्षोभ नहीं होना। गीता की भाषा में कहें तो दुःख में अनुद्विग्नता और सुख में विगत-स्पृहा होना ही समता है। बौद्धदर्शन इसे तृष्णा-प्रहाण कहता है। . सामान्यतया विभिन्न धर्मों और दर्शनों में जीवन का लक्ष्य मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति माना गया है, किंतु यहां मोक्ष या निर्वाण का क्याअर्थ है यह समझ लेना आवश्यक है। जैन दर्शन में आचार्य कुन्दकुन्द ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मोह और क्षोभ से रहित आत्मा की जो समत्वपूर्ण अवस्था है, वही मोक्ष है।' व्यवहार के क्षेत्र में भी हम देखते हैं कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति तनावों से मुक्त होकर आत्मिक शांति को प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि यही उसकी आंतरिक शांति ही उसका निज स्वभाव है। इस प्रकार वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय दर्शनों के अनुसार जीवन का सम्यक् लक्ष्य तनावों से मुक्त होना ही है। सभी प्रकार के तनाव, इच्छा, अपेक्षा और भोगाकांक्षा (तृष्णा) जन्य है, अतः भारतीय जीवन-दर्शन का लक्ष्य इच्छा और आकांक्षाओं से परे समत्वपूर्ण चैत्तसिक अवस्था की प्राप्ति ही है। ___ मानव समाज का यह दुर्भाग्य है कि वह अपनी अंतरात्मा से तो तनावों से मुक्त होना चाहता है, किंतु उसके सारे प्रयत्न तनावों के सर्जन के लिए ही होते रहते हैं। इच्छा, आकांक्षा, राग-द्वेष, कपटपूर्ण जीवन-व्यवहार आदि सभी व्यक्ति के जीवन की आत्मतुला को उद्वेलित करते रहते हैं और यही आत्म-असंतुलन या चित्तवृत्ति के विक्षोभ की स्थिति उसे तनावपूर्ण स्थिति में ले जाती है। अतः भारतीय दर्शनों के अनुसार जीवन का लक्ष्य तनावों से मुक्ति ही है, यही वास्तविक धर्म है, सम्यक् साधना है, इसे ही आत्मपूर्णता या आत्मिक शांति कहते हैं। सूत्रकृतांगसूत्र में कहा गया है कि सभी अर्हत् (वीतराग पुरुष) इसी आत्मिक शांति की अवस्था में ही प्रतिष्ठित हैं। अतः यदि सार रूप में कहना हो तो भारतीय धर्म-दर्शन के अनुसार जीवन का लक्ष्य तनावों से मुक्ति ही है। वे सभी जीवन व्यवहार, जो मेरे वैयक्तिक जीवन में, मेरे परिवार में या समाज में या राष्ट्र में अथवा समग्र विश्व में तनाव उत्पन्न कर स्वयं को व दूसरों को उद्वेलित करते हैं, वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में शांति भंग करते हैं, वे सभी अधर्म हैं और वे सभी प्रयत्न या उपाय जिनके द्वारा व्यक्ति इन चैतसिक विक्षोभों ( 6 )
SR No.004424
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy