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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-373 जैन ज्ञानमीमांसा-81 शब्द और उसके अर्थ में क्या सम्बन्ध है, इसको लेकर भारतीय-दार्शनिकों में तीन मत प्रमुख रहे हैं - (1) प्रथम मत यह है कि शब्द और अर्थ में तादात्म्य-सम्बन्ध है। शब्दों से ही उसका अर्थ (Meaning) प्रकट होता है। इस प्रकार, शब्द और अर्थ में तद्रुपता मानी गई है। मीमांसक और किसी सीमा तक न्याय-दार्शनिकों ने इस मत की पुष्टि की है। इस मत की पुष्टि के लिए प्रमुख रूप से स्फोटवाद का सिद्धान्त सामने आया। (2) इसके विपरीत, बौद्ध-दार्शनिकों ने इस मत का खण्डन किया और दूसरा मत प्रस्तुत किया, उन्होंने कहा कि शब्द और अर्थ में कोई सम्बन्ध ही नहीं होता है। इस प्रकार, शब्द और अर्थ के सम्बन्ध को लेकर परस्पर विरोधी दो मत आए। शब्द और अर्थ के सम्बन्ध में यह दूसरा बौद्धों का मत 'अपोहवाद' के नाम से जाना गया। जैन-दार्शनिकों ने इन दोनों मतों का खण्डन किया। प्रथम, उन्होंने कहा कि यदि शब्द और अर्थ में तादात्म्य-सम्बन्ध हो, तो 'लड्डू' शब्द का उच्चारण करने पर मीठा स्वाद आना चाहिए, किन्तु ऐसा नहीं होता है, अतः शब्द और अर्थ में तद्रुपता-सम्बन्ध नहीं है। बौद्धों के इस कथन पर भी जैन-आचार्य सहमत नहीं रहे हैं कि शब्द और अर्थ में किसी प्रकार का सम्बन्ध ही नहीं है। उनका कहना है कि शब्द और अर्थ में किसी प्रकार का सम्बन्ध ही नहीं है- यदि ऐसा माना जाएगा, तो शब्दों को सुनकर हमें किसी प्रकार का अर्थ-बोध होगा ही नहीं, 'गाय' शब्द को सुनकर हमारे चित्त में एक विशेष प्रकार के प्राणी का जो बोध होता है, वह नहीं होगा, जबकि शब्द हमारी चेतना में अपने अर्थ को उद्घाटित करते हैं। (3) अतः, शब्द और अर्थ में एक सम्बन्ध है, जिसे जैन-दार्शनिकों ने वाच्य-वाचक-सम्बन्ध कहा है। " इस प्रकार, जैनदर्शन शब्द और अर्थ में वाच्य-वाचक-सम्बन्ध मानता है। शब्द वाचक है और अर्थ वाच्य है। इस प्रकार, शब्द और अर्थ के सम्बन्ध को लेकर जैन-दार्शनिकों ने दोनों परस्पर विरोधी मतों में समन्वय किया शब्द अर्थ कैसे पाते हैं? किन्तु, पुनः यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि यदि शब्द और अर्थ में
SR No.004419
Book TitleJain Gyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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