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________________ आगम निबंधमाला निबंध-६ निग्रंथों के आत्म परीक्षण की परिज्ञा साधु-साध्वियों की गति विधि का चित्रण :- संयम स्वीकार करने के बाद निर्ग्रन्थ दो दिशाओं में प्रगति करते है / कई साधक संयम आराधना में प्रगतिशील होते हैं तो अनेक साधक संयम विराधना में गतिशील होते हैं। संयम आराधना में प्रगतिशील कई भिक्षु स्वप्रशंसा या स्वगच्छ प्रशंसा एवं अपना उत्कर्ष करते हुए तथा अन्य जिन वचनानुरक्त सामान्य साधकों का अपकर्ष-निंदा करने या सुनने में रस लेते हुए मान कषाय के सूक्ष्म शल्य से आत्म संयम की अन्य प्रकार से विराधना करते रहते हैं / इसके विपरीत कई आराधना में प्रगतिशील साधक स्वयं उन्नतोन्नत संयम तप का पालन करते हुए परीषह उपसर्ग सहन करते हैं, साथ ही अल्पसत्व साधकों के प्रति हीन दृष्टि नहीं रखते हैं एवं उनकी निंदा अपकर्ष भी नहीं करते हैं / किन्तु उनके प्रति मैत्री भाव, करुणा भाव, माध्यस्थ भाव आदि से सहृदयता का एवं उच्च मानवीयता का अतर्बाह्य व्यवहार रखते है / ये उत्तम आराधना करने वाले आदश साधक होते हैं / ___ संयम विराधना में गतिशील साधक स्वमति से या गतानुगतिक स्वभाव से संयम समाचारी से भिन्न या विपरीत आचरणों को एकएक करके स्वीकारते जाते हैं एवं संयम स्वीकारने के मुख्य लक्ष्य से क्रमशः च्युत होते जाते हैं / विराधना में प्रगतिशील कई साधक अन्य आराधक साधकों के प्रति आदर भाव रखते हुए उनकी आराधनाओं का अनुमोदन करते रहते हैं एवं स्वयं की अल्पतम एवं दोष युक्त साधना का खेद रखते हैं एवं आगमोक्त आचार की शुद्ध प्ररूपणा करते हैं / . इसके सिवाय विराधना में प्रगतिशील कई साधक क्षेत्र काल की ओट लेकर आगमोक्त मर्यादाओं की खिंसना या खण्डन करते [34]
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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