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________________ आगम निबंधमाला का ज्ञान कराना / तप करने की शक्ति और उत्साह बढ़ाना। निरंतर तपश्चर्या करने की शक्ति प्राप्त करने के लिए आगमोक्त क्रम से तपश्चर्या की एवं पारणा में परिमित पथ्य आहारादि के सेवन की विधि का ज्ञान कराना। 3. गीतार्थ अगीतार्थ भद्रिक परिणामी आदि सभी की संयम साधना निर्विघ्न संपन्न होने के लिए आचार शास्त्रों तथा छेदसूत्रों के आधार से बनाये गये गच्छ सम्बन्धी नियमों, उपनियमों, (समाचारी) का सम्यक् ज्ञान कराना। 4. गण की सामूहिक चर्या को त्याग कर एकाकी विहार चर्या करने की योग्यता का, वय का तथा विचरणकाल में सावधानियाँ रखने का ज्ञान कराना, एवं एकाकी विहार करने की क्षमता प्राप्त करने के उपायों का ज्ञान कराना। क्यों कि भिक्षु का द्वितीय मनोरथ यह है कि 'कब मैं गच्छ के सामूहिक कर्तव्य से मुक्त होकर एकाकी विहारचर्या धारण करूँ।' अतः एकाकी विहारचर्या की विधि का ज्ञान कराना आचार्य का चौथा आचार विनय है। आचारांग सूत्र श्रु. 1 अ. 5 और 6 में प्रशस्त और अप्रशस्त दोनों प्रकार की एकाकी विहारचर्या के लक्षण बताये गये हैं। उनमें से अप्रशस्त विहारचर्या के वर्णन को लक्ष्य में रखकर वर्तमान में एकल विहारचर्या के निषेध की परंपरा प्रचलित है। किन्तु प्रस्तुत सूत्र एवं भिक्षु का द्वितीय मनोरथ तथा गणव्युत्सर्ग तप आदि के इन आगम वर्णनों के उपलब्ध होते हुए एकल विहारचर्या का सर्वथा विरोध करना आगम सम्मत नहीं कहा जा सकता। इस पाठ की व्याख्या में भी स्पष्ट उल्लेख है कि आचार्य एकल विहारचर्या धारण करने के ‘लिए दूसरों को उत्साहित करे तथा स्वयं भी अनुकूल अवसर पर निवृत्त होकर इस एकल चर्या को धारण करे / इस सूत्र (दशाश्रुतस्कंध सूत्र) की नियुक्ति चूर्णि के संपादक प्रकाशक मुनिराजने भी अपने मंतव्य में यही सूचित किया हैं कि एकल विहार का एकान्त निषेध करना उचित नहीं है एवं ऐसा प्ररूपण अनंत संसार बढ़ाने का कारण है। यह आचार्य का चार प्रकार का 'आचारविनय' है। (2) श्रुतविनय :- 1-2. आचार धर्म का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ आचार्य का दूसरा कर्तव्य है- आज्ञाधीन शिष्यों को सूत्र व अर्थ की 111
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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