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________________ घुटने जमीन पर तथा दायीं एड़ी ठीक बायीं एड़ी के ऊपर रखते हुए आपके पैर एक.प्रकार से बँध जायेंगे / अपनी रीढ़ को स्थिर तथा सीधी रखिये मानो उसे जमीन में गाड़ दिया गया हो। टिप्पणी सिद्धासन का अभ्यास केवल पुरुषों को करना चाहिए / इसका अभ्यास किसी भी पैर को ऊपर करके तथा ज्ञान मुद्रा या चिन् मुद्रा (मुद्रा वाला अध्याय देखिये) के साथ किया जा सकता है। यदि नितम्बों को गद्दी के सहारे थोड़ा ऊपर उठा दिया जाये तो अनेक जिज्ञासुओं, खासतौर से नये अभ्यासियों को लम्बे समय तक इस आसन में रहना आसान हो जायेगा। सीमाएँ साइटिका और रीढ़ के निचले भाग की गड़बड़ी से पीड़ित व्यक्तियों को सिद्धासन का अभ्यास नहीं करना चाहिए | लाभ सिद्धासन ध्यान का एक आसन है जिसमें रीढ़ की स्थिरता को बनाये ... रखा जा सकता है तथा जो सफल ध्यान के लिए बहुत आवश्यक है। इसमें मूलबन्ध और वज्रोली मुद्रा स्वतः लग जाते हैं। परिणामस्वरूप काम - शक्ति की तरंगें रीढ़ प्रदेश से मस्तिष्क तक पहुँचने लगती हैं। यह काम सम्बन्धी क्रियाकलापों में अभ्यासी को संयम प्रदान करता है जिसे चाहे वह ब्रह्मचर्य के पालन में प्रयोग करे अथवा काम-शक्ति का आध्यात्मिक प्रगति के लिए ऊर्ध्वरेत में या इन्द्रियों व काम - शक्ति के क्रियाकलापों पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करने में प्रयोग करे / . / यह समस्त स्नायविक -प्रणाली को शान्त व सामान्य स्थिति में रखता है।
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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