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________________ है। नासिका में अस्थि की विशेष रचना है। इस पर एक मोटे स्पंज के समान नरम लचीली श्लेष्मिक झिल्ली का आवरण है जहाँ से बड़े पैमाने में रक्त-संचार होता है। नासिका पेशी जालों पर से बहने वाली वायु गर्म एवं नम हो जाती है / उसका तापमान शरीर के योग्य हो जाता है / नासिका के अग्र भाग में बहुत अधिक केशों के होते हुए भी कुछ धूल कणों का प्रवेश हो ही जाता है। कष्ट के इस कारण के निवारणार्थ समस्त श्वास नलिका में श्लेष्मिक झिल्ली तथा केश के समान रचना होती है जिसे सिलिया कहते हैं / इसके अलावा अनेक श्लेष्मिक ग्रंथियाँ होती हैं जिनके द्वारा पतला चिपकने वाला श्लेष्मा तैयार होता है जिसमें धूल-कण चिपक जाते हैं | सूक्ष्मदर्शी यंत्रों की सहायता से दिखने वाले सीलिया प्रति सेकेण्ड 13 बार सामने एवं पीछे की ओर गति करते हैं | इस क्रिया द्वारा श्लेष्मा ऊपर गले में पहुँच जाता है और यहाँ निगल लिया जाता है / अतः यदि जीवाणु शेष हों तो जठर में उपस्थित हाइड्रोक्लोरिक एसिड तथा पाचक रसों के कारण शरीर से हट जाते हैं। खाँसने की क्रिया श्वास की एक महत्वपूर्ण रक्षक प्रक्रिया है। खाँसी केवल एक वायु-वेग है जो श्वसन-स्थलों के अवरोधों को दूर करता है। पाठकगण अब इस तथ्य पर मूल्यांकन करेंगे कि जीवन के अधिकांश समय में हम स्वाभाविक रूप से श्वास क्रिया करते रहते हैं, लेकिन उसकी क्रियाओं पर चेतना नहीं रहती / किन्तु शरीर में श्वास प्रणाली बहुत महत्वपूर्ण एवं जटिल है / नासिका के साथ उदर एवं हृदय तक भी श्वास अनिवार्य है। अधिकांश व्यक्ति छोटी श्वास लेते हैं एवं श्वास दर भी अधिक होती है। विधिपूर्वक श्वास लेने से श्वसन-संस्थान पूर्ण क्षमता से कार्य करता है तथा शारीरिक जीवन के लिये ओषजन की पर्याप्त मात्रा प्रदान करता है। . हृदय एवं रक्त-परिवहन संस्थान मानवीय शरीर की समस्त क्रियाओं में 'धड़कन' की क्रिया प्रमुख है। इसका केन्द्र हृदय है। शरीर के सभी अंगों के कार्यों का यही आधार है, इसमें कोई संदेह नहीं / हृदय का कार्य रुक जाने पर सभी अंगों के कार्यों में विराम आ जाता है / विश्राम की अवधि में हृदय-गति शान्त एवं मंद होती है तथा संचित शक्ति का प्रयोग आवश्यकतानुसार विषम परिस्थितियों में होता है। विशेष परिस्थिति की उत्पत्ति पर हृदय की धड़कन में तुरंत वृद्धि हो जाती है 377
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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