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________________ विशेषता है कि वह इन्द्रियों द्वारा प्राप्त विभिन्न सूचनाओं का चुनाव एवं त्याग उनकी महत्ता के आधार पर करता है / यह राजयोग का विषय है। इसमें तीन विभिन्न उप-विभागों का भी समावेश है जिन्हें 'बुद्धि' (अन्तर्दृष्टि, उच्च ज्ञान), 'चित्त' (भूतकालीन प्रभावों का संग्रहालय) और 'अहंकार' (व्यक्तिगत भाव) कहते हैं। . आज्ञा चक्र का स्थान पीनियल ग्रन्थि है / यह ग्रन्थि मस्तिष्क में छोटे मटर के बराबर होती है / विकसित मनुष्यों में इसका आकार अपेक्षाकृत बहुत ही छोटा हो जाता है। आत्मिक स्तर पर यह सूक्ष्म बिंदु भौतिक, मानसिक और आत्मिक शरीर के मध्य सेतु का कार्य करता है / आज्ञा चक्र के जागरण द्वारा ही व्यक्ति दिव्य-दृष्टि, दिव्य-श्रवण, विचार - संचरण तथा अन्य असाधारण गुप्त शक्तियों का विकास कर सकता है / विचार-शक्ति भी अति सूक्ष्म विभिन्न तत्वों का रूप ग्रहण करती है। जब मस्तिष्क उन्नत एवं संवेदनशील बन जाता है तब आज्ञा चक्र के माध्यम से विचार शक्ति को भेजना एवं ग्रहण करना संभव हो जाता है | गहरी तथा ऊँची चेतना के प्रदेश में खुलने वाला यह आत्मिक द्वार है। - इसके अतिरिक्त आज्ञा चक्र को सक्रिय बनाकर बौद्धिक शक्ति, स्मरण शक्ति, इच्छा शक्ति, एकाग्रता आदि मानसिक शक्तियों की वृद्धि की जा सकती है। 7. बिन्दु विसर्ग सिर के ठीक पीछे जहाँ हिन्दू चोटी रखते हैं, एक. विशेष 'बिन्दु' है। यह एक रहस्यपूर्ण आत्मिक केन्द्र है / उसे 'सोम - चक्र' कहा जाता है / इसका सांकेतिक चिह्न अर्द्धचंद्र एवं चाँदनी रात्रि है। इसका संबंध पुरुषों में वीर्यरस उत्पन्न करने से है / इसी बिन्दु से यह रस टपकता है / बिन्दु का अर्थ ही है'वीर्य -बूंद'। प्राचीन क्रिया योग विज्ञान के अनुसार 'बिन्दु चक्र' एकाग्रता के लिए अत्यधिक महत्व का है। यहाँ उत्पन्न होने वाली आत्मिक ध्वनियों को उस पर ध्यान करते हुए ग्रहण किया जा सकता है। 8. सहमार वास्तविकतः यह चक्र नहीं, वरन् उच्चतम चेतना के वास का स्थान 355
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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