SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाधार के केन्द्र में एक लाल त्रिभुज है जिसका सिरा नीचे की ओर है / त्रिभुज के अंदर धुएँ के रंग का शिवलिंग है जिसके चारों ओर सुनहरे रंग के सर्प की साढ़े तीन कुण्डली है। मूलाधार को मूल केन्द्र कहा जाता है क्योंकि यह प्राथमिक महत्व की शक्ति अर्थात् कुंडलिनी शक्ति का निवास - स्थल है। यह शक्ति सर्प के रूप में गहरी निद्रावस्था में है जो शिवलिंग के चारों ओर कुंडली मारे हुए है / ब्रह्माण्ड एवं मानवीय शक्तियों का यही केन्द्र है जिनका प्रकटीकरण काम शक्ति, संवेदना, आत्मिक या आध्यात्मिक शक्तियों के रूप में होता है / 'शक्ति' मात्र एक है- केवल एक / यही वह केन्द्र है जहाँ से वह उत्पन्न होती है तथा . ' जिससे कुछ गुणों एवं विशेषताओं की प्राप्ति होती है। मनोविज्ञान की कुछ शाखाओं के अनुसार यह विचार प्रबल है कि मानवीय रचना के भीतर काम - वासना (libido) ही मूल शक्ति है और वह अपना प्रदर्शन कई रूपों में करती ____ अधिकांश व्यक्तियों में इस शक्ति की वृहत् मात्रा का प्रदर्शन मूलाधार के समीप स्थित प्रजनन - केन्द्र के द्वारा होता है / इसी कारण मनुष्यों में काम - प्रवृत्तियाँ प्रबल हैं। ___. वृहत् परिमाण की यह शक्ति भी प्रत्येक व्यक्ति में निहित प्रबल शक्ति की बहुत ही अल्प मात्रा है। आत्मशुद्धि एवं मन की एकाग्रता के द्वारा इस असीम शक्ति को जागृत कर उसे ऊपर के चक्रों से ले जाते हुए व अन्त में सहस्रार तक ले जाकर शुद्ध शक्ति का पवित्र चेतना से संयोग (शिव एवं शक्ति का योग) ही 'योग' का अन्तिम लक्ष्य है। 2. स्वाधिष्ठान चक्र इसकी स्थिति मेरुदण्ड में मूलाधार के कुछ ऊपर तथा मूत्रेन्द्रिय के ठीक पृष्ठ - प्रदेश में है। स्वाधिष्ठान का शाब्दिक अर्थ है- 'व्यक्ति विशेष का निवासस्थल' / इस चक्र का चिह्न तेज लाल रंग का षट् दलीय पदम है / दलों पर मंत्र- 'बं' 'भं' 'म' 'यं' 'रं' तथा 'लं' लिखा है। मध्य में अर्ध चन्द्र है तथा बीज मंत्र 'वं' है / वाहन मगर है जो जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसके इष्टदेव सृष्टि के रक्षक एवं पोषक भगवान विष्णु हैं / देवी राकिनी हैं जो रक्त तत्व की नियंत्रक हैं। भौतिक स्तर में स्वाधिष्ठान चक्र का प्रमुख संबंध उत्सर्जक तथा प्रजनन * अंगों से है। अतः इस केन्द्र की शक्ति से इन अंगों में सुधार लाकर उन्हें 350
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy