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________________ यौगिक आत्मिक जीवतत्व आसनों एवं अन्य अभ्यासों के साथ विशेष बिन्दु पर चित्त एकाग्र करने का निर्देश इस पुस्तक में दिया गया है। किसी अभ्यास में श्वास पर एकाग्रता रखने को कहा गया है और कहीं अंग-विशेष पर एकाग्रता के लिए आदेश मिलता है / अधिकांशतः एकाग्रता का केन्द्र बिंदु कोई 'चक्र' है / ये आत्मिक .. बिंदु एकाग्रता के विकास के लिए अनिवार्य माध्यम हैं जो स्वयं में गहन उपयोगिता रखते हैं / योगाभ्यासों के द्वारा हम मन को शिथिल कर अधिकतम रूप से लाभान्वित होना चाहते हैं तो यह आवश्यक है कि किसी वस्तु-विशेष पर एकाग्रता की जाये / किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने की अपेक्षा यदि हम श्वास- क्रिया या शरीर के किसी विशेष प्रदेश पर चित्त को एकाग्र कर यौगिक अभ्यास करें तो उसका प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। __भौतिक रूप से चक्रों का संबंध प्रमुख नाड़ी -जालों तथा अंतःस्रावी - ग्रंथियों से है / मानव रचना के ये प्रमुख प्रसारक एवं नियंत्रण केन्द्र हैं / इन नाड़ी-जालों या ग्रंथियों पर अधिकांश आसनों का विशेष शक्तिशाली एवं लाभदायक प्रभाव पड़ता है। एक या दो ग्रंथियों पर विभिन्न आसन प्रभाव डालते हैं। उदाहरणार्थ - सर्वांगासन के शक्तिशाली प्रभाव से ग्रीवा प्रदेश में स्थित चुल्लिका ग्रन्थि की अच्छी मालिश होती है तथा उसकी क्रिया में अत्यन्त सुधार होता है / यदि इसके अभ्यास काल में इसी स्थान - विशेष पर चित्त को स्थिर किया जाये तो बहुत अधिक लाभार्जन होगा। . अधिकांश व्यक्तियों में ये आत्मिक केन्द्र सुषुप्त एवं निष्क्रिय होते हैं और शक्ति का अधिकांश भाग अप्रयुक्त ही रह जाता है। योग दर्शन के अनुसार साधारणतः मानव की संभावित मानसिक शक्ति का दसवाँ भाग ही प्रयुक्त किया जाता है। शेष अप्रयुक्त शक्ति सुषुप्त रहती है जिसका चेतनाप्रक्रिया से संबंध नहीं होता है। मस्तिष्क का यह सुषुप्त व अज्ञात प्रदेश विस्तृत है / इसी भाँति अवचेतन और अचेतन मन की गहराइयों में ऐसी बातें हैं जो अज्ञात हैं या जिनका बहुत कम ज्ञान हमें है। आधुनिक मनोविज्ञान इसका समर्थन करता है। 348 .
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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