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________________ आँखों को अपलक तथा स्थिर रखा जाता है तो मन की भी यही दशा हो जाती है। एकाग्रता - वृद्धि के साथ विचार - प्रक्रिया स्वतः शिथिल हो जाती है / अत्यधिक अशान्त मन एवं विचार - तरंगों के नियंत्रण के लिए त्राटक बहुत ही शक्तिशाली विधि है। द्वितीय अभ्यास त्राटक का अभ्यास एक लघु बिन्दु, पूर्ण चन्द्र, छाया, स्फटिक के गोल टुकड़े, नासिकाग्र, जल, अन्धकार, शून्यता (भूचरी मुद्रा देखिये), शिवलिंग, सामान्य चमकीली वस्तु या अनेक वस्तुओं पर कर सकते हैं। व्यक्तिगत इष्टदेव या गुरु के चित्र में उनके मुखारविन्द पर त्राटक उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति की अनुभूति के साथ करना चाहिए / त्राटक का अभ्यास उगते हुए बाल-रवि, दर्पण में स्वयं के प्रतिबिम्ब या अन्य व्यक्ति के नेत्रों पर भी किया जा सकता है। इन अभ्यासों में कुछ बाधायें होती हैं, अतः इसे गुरु के निर्देशन में करें / त्राटक को प्रमुखतः दो भागों में विभाजित किया गया है(१) बहिरंग या बाह्य (2) अंतरंग या अन्तः। ऊपर दिये हुए अभ्यास बहिरंग त्राटक के ही अंग हैं। चक्र या व्यक्तिगत इष्टदेव को आंतरिक दृष्टि से देखने की क्रिया ही अंतरंग त्राटक है / इस त्राटक में साधारणतः नेत्र बन्द रहते हैं। यदि नेत्र .खुले हों तो आन्तरिक एकाग्रता इतनी होनी चाहिए कि बाहरी वस्तुओं को नेत्र ग्रहण न करें। समय - सामान्य उद्देश्य - पूर्ति हेतु 15 से 20 मिनट का अभ्यास पर्याप्त है | . आध्यात्मिक उद्देश्य पूर्ति या नेत्र - विकार के निवारण हेतु अभ्यास की अवधि अधिक से अधिक बढ़ाई जा सकती है। क्रम प्रातः 4 से 6 बजे तक का समय सर्वोत्तम है। अभ्यास आसनप्राणायाम के उपरांत करना चाहिए। दिन में किसी भी समय का अभ्यास लाभप्रद है। गहन एकाग्रता के लिए पेट खाली होना चाहिए / 327
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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