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________________ कुछ हफ्तों या महीनों के अभ्यास के बाद श्वास की गति धीमी करते जाना चाहिए / दो महीनों या अधिक अवधि के बाद श्वास की गति प्रति मिनट 5 से 8 तक होनी चाहिए / योग्य निर्देशक के निर्देशन में अभ्यास करते हुए अधिक अवधि के अभ्यास के बाद श्वास-क्रिया में न्यूनता भी लाई जा सकती है। आवृत्ति इच्छानुसार या संभावित अवधि तक / शांति और विश्राम काल में अभ्यास उत्तम होगा / इस अभ्यास का योग अन्य योगाभ्यास के साथ किया जा सकता है। व्यक्तिगत क्रियाओं के अध्याय में इसकी विस्तृत विवेचना की गयी है। सावधानी बिना गुरु के निर्देशन के पूर्ण अभ्यास न कीजिये / जो साधक बहुत कड़ी मेहनत करते हैं, उनको कड़वे स्वाद का अनुभव प्राप्त होता है। यह हानिप्रद है। अतः इस स्थिति में अभ्यास बन्द कर दीजिये। लाभ .. - मानव शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालता है। तालु के पीछे के रन्ध्र में अनेक दाब-बिन्दु तथा ग्रन्थियाँ हैं। इनका शारीरिक क्रियाओं पर अत्यधिक नियंत्रण रहता है / मोड़ी हुई जिह्वा के कारण इनके रस - स्राव की क्रिया में वृद्धि होती है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य को बहुत लाभ पहुँचता है। लार की उत्पत्ति होती है जिससे भूख - प्यास दूर होती है। भूमि के नीचे अधिक अवधि तक रहने वाले योगी पूरे समय खेचरी मुद्रा लगाये रहते हैं। अतः बिना किसी प्रकार की हानि पहुँचे इच्छानुसार अवधि तक श्वास रोकने में समर्थ होते हैं। यह मुद्रा प्राण - शक्ति के संचय एवं कुण्डलिनी - शक्ति को जागृत करती इस अभ्यास की पूर्णता की प्राप्ति पर सूक्ष्म एवं स्थूल शरीर के मध्य सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है / चेतना की स्थिति सूक्ष्म एवं स्थूल स्तर के मध्य अर्थात् आकाश में हो जाती है। प्राचीन योग शास्त्रों में इस मुद्रा को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है / 311
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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