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________________ आकाशी मुद्रा आकाशी मुद्रा विधि ध्यान के किसी आसन में बैठिये। जिह्वा को पीछे मोड़कर ऊपरी तालु से स्पर्श कीजिये / (खेचरी मुद्रा) उज्जायी प्राणायाम तथा शांभवी मुद्रा का अभ्यास कीजिये / धीरे-धीरे सिर को कुछ पीछे मोड़िये / (पूरी तरह नहीं) धीरे-धीरे दीर्घ पूरक कीजिये। . सिर की इस झुकी अवस्था में उज्जायी प्राणायाम से गले में खराश भी हो सकती है परन्तु कुछ अभ्यास के पश्चात् यह अभ्यास कष्टरहित हो जायेगा / (चित्र के लिए मूर्छा प्राणायाम देखिये) समय .. अधिकतम अवधि तक अंतिम स्थिति में रुकिये / यदि कुछ ही समय के उपरांत अभ्यास कठिन जान पड़े तो उज्जायी प्राणायाम, खेचरी मुद्रा तथा शांभवी मुद्रा को मुक्त कीजिये। कुछ देर विश्राम कर क्रिया की पुस्गवृत्ति कीजिये / एकाग्रता. . . आज्ञा चक्र पर। सावधानी सभी मुद्राओं की भाँति इसका प्रशिक्षण भी योग्य निर्देशन में लीजिये / लाभ यह उच्च यौगिक अवस्था है जिसमें साधक चेतना की उच्च स्थिति को प्राप्त करता है। यह मुद्रा मन को स्थिरता एवं शांति प्रदान करती है। उज्जायी प्राणायाम, शांभवी तथा खेचरी मुद्रा के लाभ मिलते हैं / 305
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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