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________________ से अधिकांश का अभ्यास योग्य गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए / सत्यतः कोई भी उच्च अभ्यास बिना निर्देशन के नहीं करना चाहिए / यही कारण है कि यहाँ कुछ चुनी हुई, सरल एवं सर्वसाधारण अभ्यास के योग्य मुद्राओं का ही वर्णन किया गया है। चित्त को प्रकट करने वाले किसी विशेष भाव को मुद्रा कहते हैं / उच्च श्रेणी के भारतीय नृत्यों में मुद्रा हाथों की विशेष अवस्था है जो आंतरिक भावों या संवेदनाओं का संकेत करती है। योनिमुद्रा, चिन्मुद्रा आदि अनेक मुद्राएँ हाथ की ही विशेष स्थितियाँ हैं / नृत्य - प्रक्रियाओं की भाँति इनका उद्देश्य भी अंतरंग भावों का प्रकटीकरण या साधक के आध्यात्मिक भावों की ओर संकेत करना है। प्रतिदिन सामान्यतः घटने वाली बाह्य जगत की क्रियाओं के प्रति हम सचेत रहते हैं | कुछ मुद्राओं द्वारा इन अनैच्छिक शरीरगत प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण प्राप्त किया जाता है / मुद्राओं का अभ्यास साधक को सूक्ष्म शरीर - स्थित प्राण - शक्ति की तरंगों के प्रति जागरूक बनाता है। अभ्यासी इन शक्तियों पर चेतन रूप से नियंत्रण प्राप्त करता है / फलतः व्यक्ति अपने शरीर के किसी अंग में उसका प्रवाह ले जाने या अन्य व्यक्ति के शरीर में उसे पहुँचाने की (अन्य व्यक्ति की प्राणिक या मानसिक चिकित्सा के लिए) क्षमता प्राप्त करता है। : अधिकांश मुद्राओं का संगठन बंध, आसन एवं प्राणायाम के सम्मिलन से होता है जो एक ही अभ्यास कहलाता है / प्रत्येक अभ्यास के निश्चित लाभ हैं; अतः योग शक्तिशाली अभ्यास का निर्माण करता है / इनके अभ्यास से बाह्य जगत से सम्बन्ध टूट जाता है, इन्द्रियाँ अंतर्मुखी होकर प्रत्याहार की स्थिति निर्मित करती हैं। इसलिए ये अभ्यास आध्यात्मिक साधकों के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं / चित्त को एकाग्र करने में भी ये अभ्यास समर्थ हैं। . : यद्यपि इनका प्राथमिक उद्देश्य आध्यात्मिक है परन्तु जैसा कि वर्णन किया जा चुका है, इनसे मानसिक एवं शारीरिक लाभ की प्राप्ति होती है / लाभों का विस्तृत वर्णन प्रत्येक मुद्रा की विधि के साथ आगे प्रस्तुत किया गया
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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