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________________ बंध प्रस्तावना योगाभ्यास का यह छोटा परन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण वर्ग है / यह अन्तः शारीरिक प्रक्रिया है / इस अभ्यास के द्वारा व्यक्ति शरीर के विभिन्न अंगों तथा नाड़ियों को नियन्त्रित करने में समर्थ होता है | बन्ध का शाब्दिक अर्थ है बाँधना या कड़ा करना / इस अभ्यास के लिए आवश्यक शारीरिक क्रियाओं का वर्णन ही इस वर्ग के अन्तर्गत किया गया है। शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों को धीरे से, परन्तु शक्तिपूर्वक संकुचित एवं कड़ा किया जाता है / इससे आन्तरिक अंगों की मालिश होती है। रक्त का जमाव दूर होता है। यह अंग विशेष से सम्बंधित नाड़ियों के कार्यों को नियमित करता है / परिणामतः शारीरिक कार्य एवं स्वास्थ्य में उन्नति होती है। बन्ध शारीरिक अभ्यास हैं, परन्तु अभ्यासी के सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त विचारों एवं आत्मिक तरंगों में प्रवेश कर ये चक्रों पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं। सुषुम्ना नाड़ी में प्राण के स्वतन्त्र प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करने वाली ब्रह्म ग्रन्थि, विष्णु ग्रन्थि तथा रुद्र ग्रन्थि इस अभ्यास से खुल जाती हैं / इस प्रकार आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न होती है / उच्च अभ्यासी सुषुम्ना नाड़ी की जकड़न का अनुभव कर सकते हैं / यह आध्यात्मिक शक्ति की उत्पत्ति का सूचक है। ध्यान की उच्च अवस्था को प्राप्त व्यक्ति यह ज्ञात करेंगे कि यह अनुभव ठीक वैसा ही है जैसा चक्रों के जागरण के समय होता है। अन्य यौगिक क्रियाओं के साथ बन्धों का समन्वय अभ्यास में उन्नति करने पर एवं परिपक्वता-प्राप्ति के उपरान्त अभ्यास स्वतः किया जा सकता है / योग-मार्ग में अभ्यासी की उन्नति के बाद बन्धों के अभ्यास का समन्वय मुद्रा या प्राणायाम के साथ किया जा सकता है (जैसा कि अगले अध्यायों में वर्णित किया गया है)। इससे अधिक लाभार्जन किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि जब प्राणायाम की तरह प्राण का प्रवाह समान हो जाता है तो बन्धों का नियन्त्रण उसके प्रवाह पर हो जाता है तथा यह आवश्यकतानुसार विशेष प्रदेश में उसका बहाव करते हुए उसके अपव्यय को बचाता है। जब यौगिक क्रियाओं का समन्वय होता है तब व्यक्ति में आध्यात्मिक शक्तियाँ जागृत होती हैं तथा उच्च 'योग' का प्रारम्भ होता है / मुद्रा एवं 286
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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