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________________ कपालभाति प्राणायाम विधि ध्यान के किसी आसन में बैठिये / आँखें बन्द हों तथा पूरा शरीर शिथिल रहे / रेचक की प्रमुखता रखते हुए श्वसन-क्रिया कीजिये / भस्त्रिका की भाँति पूरक सहज एवं समकालीन हो / केवल रेचक क्रिया में धीरे से बल लगाइये। साठ से सौ तक रेचक के पश्चात् दीर्घ रेचक तथा एक साथ जालंधर बन्ध, मूलबन्ध तथा उड्डियान बन्ध का अभ्यास कीजिये। नेत्रों को बन्द रखे हुए ही भ्रूमध्य में शून्य पर ध्यान कीजिए / शून्यता एवं शान्ति का अनुभव कीजिए। बंधों को शिथिल कर धीरे-धीरे पूरक कीजिए / सम्पूर्ण शरीर को शिथिल कर दीजिये। यह एक आवृत्ति है / इसकी पुनरावृत्ति 5 बार कीजिये / समय प्रारम्भ में ऊपर वर्णित विधि से ही अभ्यास कीजिये / उच्च अभ्यासी ध्यान की पूर्व तैयारी के लिए आवृत्तियों की संख्या 10 तक बढ़ा सकते कुम्भक की अवधि धीरे-धीरे बढ़ाइये / टिप्पणी - यह प्राणायाम हठयोग के षट्कर्मों में से एक है। - लाभ इस क्रिया द्वारा मस्तिष्क के सामने के प्रदेश की शुद्धि होती है। .. इस अभ्यास से विचारों एवं दृश्यों का प्रकटीकरण बन्द हो जाता है, फलतः मन को विश्राम मिलता है / मन की शून्य या आकाशीय अवस्था में मन को शक्ति की पुनः प्राप्ति होती है। . मस्तिष्क के रक्त के जमाव को दूर करने की अति उत्तम प्रक्रिया है। ध्यानाभ्यास की अच्छी प्रस्तावना है। सीमाएँ .. भस्त्रिका के समान / 281
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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