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________________ उच्च अभ्यास के आसन प्रारम्भिक सरल आसनों के नियमित अभ्यास से शरीर में उपयुक्त लचीलापन आ जाने के पश्चात् उच्च अभ्यासियों को ही इन आसनों का अभ्यास करना चाहिये / प्राथमिक एवं माध्यमिक वर्ग के आसनों के अभ्यास में अच्छी सफलता-प्राप्ति के उपरान्त ही इस वर्ग के आसनों के अभ्यास के प्रयास की सलाह दी जाती है / सत्य तो यह है कि यदि नये अभ्यासी आसनों के अभ्यास की सामान्य क्षमता रखते हुये इन कठिन आसनों के सम्पादन का प्रयत्न करें तो उन्हें उत्साहित होने के बजाय निरुत्साहित होना पड़ेगा | उनके मानस-पटल पर गलत प्रभाव पड़ेगा / वे इन आसनों को ठीक वैसे ही असंभव कार्य समझने लगेंगे, जैसे कि बाहरी व्यक्ति सरकस के व्यायाम को समझता है / वास्तव में यह गलत धारणा है / स्वस्थ व्यक्तियों के लिये इन आसनों का अभ्यास कदापि असंभव नहीं। आवश्यकता इस बात की है कि शरीर के तैयार होने पर उपयुक्त समय में इनका अभ्यास प्रारम्भ किया जाये; इसके पूर्व नहीं। इन आसनों के अभ्यास के समय इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिये कि किसी प्रकार का शारीरिक तनाव न पड़ने पाये; अन्यथा चोट पहुँचने की संभावना रहती है / कारण यह है कि इन आसनों में पैरों को असामान्य रूप से मोड़ा जाता है। पैरों को शक्तिपूर्वक एक दिन में पूर्णावस्था में लाने की कोशिश कर शरीर को क्षति पहुँचाने की अपेक्षा उत्तम यह होगा कि उन्हें प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा मोड़कर कुछ दिनों के अभ्यास के उपरांत अंतिम स्थिति प्राप्त की जाये। 238
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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