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________________ मरुदण्डासन .... .000000. 00000000.... .. . मरुदण्डासन मेरुदण्डासन 1 . विधि पैरों को घुटनों से मोड़ें, तलवों को नितम्बों के सम्मुख रखें। दोनों पैर एक-दूसरे से लगभग आधा मीटर दूर रहें। हाथों की अंगुलियों से पैरों के अंगूठों को पकड़िये / कमर को धीरे-धीरे पीछे झुकाइये और दोनों पैरों को सीधा कीजिये / ._ हाथों एवं पैरों को सीधा कर उन्हें जितना हो सके , दूर कीजिये | श्वास प्रारम्भिक अवस्था में पूरक तथा पैरों को फैलाते समय कुम्भक / ___आसन के अन्त में रेचक कीजिये। समय जितनी देर श्वास रोकने की क्षमता हो, उतनी देर आसन कीजिये / एकाग्रता ... दृष्टि को किसी बिन्दु पर एकाग्र करते हुये संतुलन कायम रखने पर / सीमाएँ / स्लिप डिस्क या साइटिका में इसका अभ्यास वर्जित है। लाभ यह आसन यकृत एवं अन्य उदरस्थ अंगों को क्रियाशील बनाता है। आँतों में स्थित कीटाणुओं को दूर करने में मदद करता है। आँतों को क्रियाशील करता व सभी प्रदेशों को शक्ति प्रदान करता है। एकांग्रता एवं सन्तुलन शक्ति बढ़ाता है। . 221
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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