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________________ विपरीतकरणी मुद्रा .. विपरीतकरणी मुद्रा विपरीतकरणी मुद्रा यह आसन सर्वांगासन की भाँति ही है / यह सर्वांगासन से सरल है। अतः प्रारम्भिक अवस्था में इसका अभ्यास करना चाहिए / जिनकी गर्दन की मांसपेशियों कठोर हैं तथा जो धड़ को सीधा नहीं कर सकते, उन्हें इस आसन का अभ्यास करना चाहिए। विधि सर्वांगासन की तरह ही है। किंचित अन्तर यह है कि इसके अभ्यास में ठुड्डी का स्पर्श छाती से नहीं किया जाता / धड़ को जमीन से उठाकर 45 अंश के कोण पर ही रखा जाता है जबकि सर्वांगासन में 90 अंश का कोण बनाते हुए धड़ सीधा सधा रहता है। टिप्पणी 'कुण्डलिनी योग' में इस आसन का अधिक उपयोग किया जाता है / 200
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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