________________ 16 ] कर्मस्तवाख्योः द्वितीयः कर्मग्रन्थः मिच्छनपुंसगवेयं, नरयाउं तह य चेव नरयदुगं / इगविगलिंदिय'जाई, हुंडमसंपत्तमायावं // 13 // थावर सुहुमं च तहा, साहारणयं तहा अपजत्तं / एया सोलस पयडी; मिच्छमि य बंधवोच्छेओ // 14 // थीणतिगं इत्थी वि य. अण तिरियाउं तहेव तिरियदुगं / मज्झिम चउ संठाणं, मज्झिम चउ चेव संघयणं / / 15 / / उज्जोयमप्पसत्था, 'विहायगइ दुभगं अणाएज्ज / दूसर नीयागोयं; सासणसम्ममि वोच्छिन्ना / / 16 / / बीयकसायचउक्क, मणुयाउ मणय दुग य ओरालं / तस्स य अंगोवंगं, संघयणाई अविरयंमि // 17 // तइयकसायचउक्क, विरयाविरयंमि बंधवोच्छेओ। "अस्सायमरइ सोयं, तइ चेव य अथिरमसुभं च // 18 // अजसकित्ती य तहा, पमत्तविरयंमि बंधवोच्छेओ / "देवाउयं च एगं, नायव्वं अप्पमत्तंमि // 19 // निद्दापयला य तहा, अपुव्बपढममि बंधवोच्छेओ देवदुगं पंचिंदिय उरालवज्जं चउसरीरं // 20 // समचउरं वेउव्वियआहारयअंगुवंगनामं च / / वण्णचउक्त च तहा, अगुरुयलहुयं च चत्तारि // 21 // तस चउ पसत्थमेव य, विहायगइ थिर सुभं च नायव्वं / / सुहयं सुस्सरमेव य आएज्जं चे निमिणं च // 22 // तित्थयरमेव तीसं, अपुव्वछभाग बंधवोच्छेओ। हासरइभयदुगुछा, अपुव'चरमंमि वोच्छिन्ना // 23 // पुरिसं चउसंजलणं, पंच य पयडीओ पंच भागंमि / अनियट्टीअद्धाए, ... जहक्कम .. बंधवोच्छेओ // 24 // नाणंतरायदसगं, देसण चत्तारि उच्च जसकित्ती / एया सोलस पयडी, "सुहुमकसायंमि वोच्छिन्ना / / 25 / / 1 "जाई" इत्यपि / 2 “विहागइरदूमयं” इत्यपि / 3 “दुवय" इत्यपि / 4 "अस्साइ अरइ सोगं" इत्यपि / 5 "देवाउगं च एक तहापमत्तम्मि नायव्वं" इत्यपि / 6 "०चरिमम्मि" इत्यपि / 7 "सुहमसरागम्मि' इत्यपि।