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________________ 32 ] षडशीतिनाम्नि चतुर्थे कर्मग्रन्थे _ (राम०) पंचण्हं इंदियाणं मणस्स य अनियमो छण्हं कायाणं वहे अविरई एवं अविरइ बीओ बंधहेउ // 2 // सोलस कसाया नव नोकसाया पणवीसं एए तइओ बंधहेऊ // 3 // पगरस जोगा चउत्थो बंधहेऊ // 4 // एए सामन्नेण / उत्तं च"चउपञ्चइओ बंधो, पढमे उधरिमतिगे तिपच्चइओ / मोसगबीओ उवरिमदुगं च देसिका देसम्मि / / 1 / / उवरिल्लपंचगे पुण दुपच्चा जोगाच्च भो ति"ति। एए मूलहेऊ गुणट्ठाणगेसु / संपयं पुण सुत्तकारो तेसु चेव उत्तरबंधहेऊ दंसेइपणपन्नपन्नतियबहियचत्तगुणवत्तछ व उदुगवीसा। सोलस दस नव नव सत्त हेउणो न व अजोगि'म्मि // 77 // (राम०) पंचविहं मिच्छत्त, बारसविहा अविरई, पणवीसं कसाया, जोगा तेरस, आहागदुगूणा, एए पणपण्णं मिच्छादिट्ठिस्स बंधहयेवो 1 / सासायणस्स मिच्छत्त विणा पण्णासं 2 / बारसविहा अविरई अणंताणुवंधिवज्जा एगवीसं कसाया मणचउक्कं वइचउक्कं ओरालियं वेउविव्वयं च सम्मामिच्छस्स तेयालीसं हेऊ 3 / वेउन्त्रियमीसओरालियमीसकम्मइगजोगतिगे छूढे तेयालीसाए छायालीसं अविरयस्स 4 / तसविरइवज्जा एगारसविहा अविरई पढमबीयकसायट्ठगवज्जा सत्तरस कसाया मणचउक्कं वइचउक्क ओरालं सरीरं वेउव्वियदुर्ग च एए ऊणयालीसं देसविरयस्स 5 / संजलणचउक्कं नोकसाय नवर्ग मणचउक्क वइचउक्कं आहारदुर्ग 'विउब्धियदुर्ग ओरालियं च छव्वीसं पमत्तसंजयस्स 6 / एसा चेत्र छन्वीसा वेउव्वियमीसआहारगमिस्सवज्जा चउवीसं अप्रमत्तस्स / संजलणचउक्कं नोकसायनवर्ग मणचउक्कं वइचउक्कं ओरालियसरीरं एवं बावीसं अपुवकरणस्स 8 / संजलणचउक्कं वेयतिगं जोगनवगं एवं सोलस वायरसंपरायस्त है। संजलगलोहं जोगनवगं दस सुहुमसंपरायस्स 10 / ' उवसंतमोहक्खीणमोहाणं नव नव जोगा बंधहेऊ 11-12 / सजोगिस्स सत्त जोगा दट्ठया 13 / अजोगिस्स बंधहेयवो न संति 14 // 77 // एत्थ गाहाओपणपण्णबंधहेऊ मिच्छद्दिहिस्स "उन यो होति / आहारगदुगरहिया जेणं तं संजयस्स मवे 1 // 1 // पन्नासा सासणे पंचगमिच्छत्तविरहिया होइ 2 / मिस्से पुण तेयाला अण कम्मणमिस्सदुगरहिया 3 // 2 // तुरियम्मि उ छायाला कम्मणमिस्सदुगसंजुया जाण 4 / एगूणवत्त देसे बीयकसायाण मावाओ // 3 // तसअविरइउग्लगमिस्सं सम्मइगजेण तत्थ ना सत्ता 5 / छव्वीसा य पमत्तेसंजलणा 4 नोकसाया :य // 4 // कम्मण उरलगमिस्सं वज्जित्ता सबजोगसब्भावे 13-6 / चउकीसं अपमत्ते वेउव्वाहारमिस्सविणा 7 / / 5 / / बावीसा उ अपुव्ये वेउव्वाहारविरहिया होइ 8 / अनियट्टीए सोलस हासच्छक्केण रहिया उ६|| सहमे दसगं जाणसुतिवेयतिकसायविरहियं काउं१०। उवसंते खीणे पुण जोगा नव बंधहेउत्ति 11-12 // 7 // सज्जोगिकेवलिंमि सच्चअसच्चामुसावइमणो य / 'कम्मं उरलदुगेणं जोगा सत्तेव बंधस्स 13 // 8 // 1. “त्ति” इत्यपि पाठः / 2 "व्य" इत्यपि / 3 "वेउव्विय" इत्यपि। 4 "भोहओ" इत्यपि / 5 "कम्मणमुरलदुग तह, जोगा" इति जे।
SR No.004404
Book TitleKarmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharvijay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1974
Total Pages716
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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