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________________ गतिभेदेषु गुणस्थानानि जीवस्थानानि च तथा मूलोत्तरप्रकृतयः (121 इह बन्धस्वामित्वं वक्ष्य इत्युक्तम् / बन्धश्च कर्मप्रकृतीनां भवति, अतः शिष्यहितार्थ सूत्रेऽनुक्ता अपि प्रथमं प्रकृतयः सर्वाः प्ररूप्यन्ते, 'ताश्चैताः-"दसण 1 नाणावरण 2 ऽन्तराय 3 मोहा 4 ऽऽउ 5 गोय 6 वेयणियं 7 / नामं 8 च नव 1 पण 2 पण 3 ऽढवीस 4 चउ 5 दु 6 दु 7 बियाल 8 विहं // 1 // नयणेयरोहिकेवल दसणावरणयं भवे चउहा / निद्दापयलाहिं छहा, निदाइदुरुत्तथीणडी // 2 // नाणांवरणं महसुयआहिमणोनाणकेवलावरणं / विग्धं दाणे लाभे, भोगुवभोगेसु विरिए य // 3 // सोलस कसाय नव नोकसाय दंसणतिगं च मोहणियं / नरयतिरिनरसुराऊ, नोउच्चं सायमस्सायं // 4 // गइ 1 जाइ 2 तणु 3 उवंगा 4, बंधण 5 संघाय. णाणि 6 संघयणा 7 / संठाण 8 वण 9 गंध 10 रस 11 फास 13 अणपुश्वि 14 विहगगई 14 // 5 // पिंउपयडित्ति चउदस, परघाउन्जोयआयवुस्सासं। अगु. रुलहुतित्थनिमिणोवघायमिइ अट्ठ पत्तेया // 6 // तसवायरपजत्तं, पत्तेय थिरं सुभं च सुभगं च / 'सुसराऽऽएजजसं तसदसगं थावरदसं तु इमं // 7 // थावरसुहम अपज्ज, साहारणअथिरअसुभदुभगाणि | दूसरणाएजाजसमिय नामे सेयरा वीसं // 8 // तसचउ थिरछक्कं अधिरछक्क सुहुमतिग थावरचउक्कं / सूभगतिगाइविभासा, पयडीण तयाइ संखाहिं / 9 // गइयाईण य कमसो, चउ 1 पण 2 पण 3 ति 4 पण 5 पंच 6 छ 7 छक्कं 8 / पण ९दुग 10 पण 11 58 12 चउ 13 दुग १४मिय उत्तरभेय पणसहो / / 10 / / निरयतिरिनरसुरगई, इगषियतियचउपणिंदि जाईओ / ओरालियवेउव्वियआहारगतेयकम्मइया // 11 // पढमतिणुणणवंगा, पंधण संघायणा य तणुनामा / सुत्ते सत्तिविसेसो संघयणमिहहिनिचउत्ति / 12 / / छडा संघयणं बजरिसभनाराय 1 वजनारायं 2 / नाराय 3 मडनाराय४ कीलिया 5 तह य छेवढे 6 // 13 / / समचउरंसं 1 नग्गोह 2 साइ 3 खुजाणि 4 वामणं 5 हुंड 6 / संठाणा वण्णा किण्हनोललोहियहलिहसिया // 14 / / सुरभि 1 दुरभी 2 रसा पण,तित्त 1 कडु 2 कसाय 3 अंबिला 4 महुरा 5 / फासा गुरु 1 लह 2 मिउ 3 खर 4 सी 5 उण्ह 6 सिणिड 7 रुक्ख 8 58 // 15 // चउह गइव्वणपुवो, दुविहा य सुहासुहा विहायगई। गइअणुपुव्वी उ दुगं, तिगं तु तं चिय नियाउजुयं / / 16 / / इय तेणउई संते पंधणपण्णरसगेण तिसयं वा। वण्णाइभेय 16 षधण 15 संधाय 5 विणा उ सत्तट्ठी / / 17 / / सा बंधुदए पंधणसंघाया निय. तणुग्गहणगहिया / वण्णाइविगप्पा वि हु, न य बंधे सम्ममीसाइ // 18 // वेउ. __5 "ताश्चेमाः" इत्यपि पाठः / 2 "हवइ"इत्यपि पाठः / 3 "ति" इत्यपि / 4 "सूसरआएजजसं" इत्यपि मुद्रितप्रतौ।
SR No.004404
Book TitleKarmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharvijay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1974
Total Pages716
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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