SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थयु छे. [ उपोद्गात प्रश्नः-आवृत्ति कलिकाल सर्वज्ञ भगवंत विरचित मध्यम , हैमप्रकाशना पूर्वार्धमा उपोद्घातमां तेभो स्पष्ट . वृत्ति छे. पण लेखक आदिना प्रमादादि दोषथी | लखे छे के-"कोई विद्वान उद्धरेल मध्यमवृत्ति 8000 _ 'मध्यम' ना स्थाने 'लघु' शब्द लखाई गयो | श्लोक प्रमाण छे". आथी "आ वृत्तिने कलिकाल होय अम केम न संभवे ? सर्वज्ञ भगवंत सिवाय अन्य कोई विद्वाने (बृहद्उत्तरः-लेखक आदिना दोषथी अकाद बे स्थळे क्षति | वृत्तिमांथी) उद्धरी छे" अत्रा तेमनां विचारो हता संभवे,पण अहीं तो चार स्थळोमा छ वखत लघुवृत्तिनो सिद्ध थाय छे. तेमणे आ वृत्तिनोस्वोपज्ञ तरीके क्या य ज प्रयोग थयो छे, अने क्यांय पण मध्यमवृत्तिनो उल्लेख नथी को. प्रकाशित थयेल आ वृत्तिना प्रथम निर्देश ज नथी विभागमा टाइटल पेजमां 'स्वोपज्ञ' शब्दनो उल्लेख अन्यव्यक्ति को छे. कारण के श्रीक्षमाभद्रसूरिजी वळी आ वृत्तिनी भाषामा तथा बहवृत्तिनी | महाराजना स्वर्गवास बाद आ टाइटल पेज तैयार भाषामां अमुक स्थळोमां तफावत छे. आ वृत्ति जो | कलिकाल सर्वज्ञ भगवंत विरचित होय तो आ भाषानो | तफावत न होय. ___ लघुवृत्ति स्वोपज्ञ छे ? हवे से प्रश्न आवीने उभो रहे छ के तो पछी लघुवृत्ति पण स्वोपज्ञ छे के केम विचारणीय मूल प्रतमां आ वृत्तिने स्वोपज्ञ कही छे तेनु शु? | छे. प्राचीन तिहासिक ग्रन्थोमांथी आपणने अटल __आ प्रभनु समाधान से थई शके के कलिकाल | ज जाणवा मळे छे के-“कलिकाल सर्वज्ञ भगवंते सिद्धसर्वज्ञ भगवंत विरचित बृहवृत्ति उपरथी आ वृत्ति | र राजनी प्रार्थनाथी अक वर्षमा सवा लाख श्लोक प्रमाण लखवामां आवी होय अटले कर्ता आ वृत्तिने | पंचांगपरिपूर्ण व्याकरण रच्यु." पण से व्याकरण पोताना नामे जाहेर न करता कलिकाल सर्वज्ञ उपर केटली अने कई कई वृत्तिभोरची, तथा मे वृत्तिभगवंतना नामे जाहेर करी होय. आ प्रमाणे मानवामां | ओनु प्रमाण केटलु हतुओ जाणवा नथी मळतु. कोई विरोध मने नथी जणातो अटले अम मानवानु हाल लघुवृत्तिनी प्राचीन जे प्रतो प्राप्त थाय मन थाय छे के छे ते बे प्रकारनी छे. कोई प्रतोमां तेनो 'स्वोपज्ञ' प्रस्तुतवृत्ति नथी तो कलिकाल सर्वज्ञ भगवंत | तराक निदश | तरीके निर्देश छे, अने कोई प्रतोमां तेना कर्ता विरचित प्रने नथो तो मध्यमवृत्ति, किन्तु अन्य कोई | तरीके काकलकायस्थ' नो निर्देश करवामां आवेल छे. | बंने प्रकारनी प्रतोमा प्रयोगोनो के वाक्यरचना आदि विद्वान विरचित लघुवृत्ति छे. | नो कोई खास तफावत देखातो नथी. क्यांक क्यांक प्रश्न:-तो पछी स्व० पू० आचार्य भगवंत श्रीक्षमा- | नहिवत् तफावत जणाय छे. भद्रसूरिजी महाराजे, आ वृत्तिना चतुष्कवृत्ति पर्यन्तना प्रथम विभागने प्रकाशित करवामां __हवे अहीं प्रश्न थाय छे के जो कलिकालसर्वज्ञ आवेल छे, तेमां टाइटल पेजमां आ वृत्तिनो भगवंते लघुवृत्तिनु प्रणयन कयु हतु तो आ काकल'स्वोपज्ञमध्यमवृत्ति' मे प्रमाणे उल्लेख शा कायस्थने अन्य लघुवृत्ति रचवानी शी जरूर ? शु माटे को ? कलिकाल सर्वज्ञ भगवंत प्रणीत लघुवृत्तिमां क्लि ठता हती ? सरस्वतीलब्धप्रसाद कलिकालसर्वज्ञ भगउत्तरः-स्व० पू० आचार्य भगवंत श्रीक्षमाभद्रसूरिजी वंतनी कृतिमां कोई जातनी न्यूनता तो न ज होय.छतां . महाराजे हाल प्रसिद्ध अन्य लघुवृत्तिनी अपेक्षा काफलकायस्थे लघुवृत्ति रची अथी अनुमान थाय छे आ वृत्तिनु प्रमाण वधारे होवाथी तेने मध्यम के कलिकाल सर्वज्ञ भगवंते मात्र बृवृत्ति ज रची वृत्ति तरीके गणी छे, परन्तु तेमणे आ वृत्तिने हशे अने अथी नूतन विद्यार्थिओ सिद्धहेममां शीघ्र स्वोपज्ञ तरीके गणी ज नथी. अने सरळताथी प्रवेश करी शके से दृष्टिले काकल
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy