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________________ 308 काव्यमाला / ताण्डवं यथा'सुअवहवइअरणिसुणिअ दारुणुरोसविसट्ठपहाररुहिरारुणु / जलिउ जाणइ णरु रिउसन्तावणु अणलसरिच्छ जइ होइ महारणु 391' [सुतवधव्यतिकरं निशम्य दारुणरोषविसृष्टप्रहाररुधिरारुणः / ज्वलितो जायते नरो रिपुसंतापनोऽनलसदृशो यदि भवति महारणः / / इदं वीररसप्रधानत्वात्ताण्डवम् // छलिकं यथा'णिसुणिउ पच्छा तुरअरउ भुण्डि हिंसि हसन्ति / णिअकन्तं डाढजुअलेहिं पुणु पुणु,ण अ बलन्ति // 392 // ' [निशम्य पश्चात्तुरगरवं शूकरी हिंसाथै हसति / निजकान्तं दंष्ट्रायुगलेन पुनः पुनर्न च दशति // ] इदं तु शृङ्गारवीररसप्रधानत्वाच्छलिकम् // सम्पा यथा'वीहेसि हरिमुहि अवि होहि मं गले लेहि सइ / कन्दइ रिट्टासुरमारिउ कण्ठवलिउ ण पइ // 393 // ' [विभेषि हरिमुखि अपि भव मां च गले गृहाण सदा / क्रन्दति रिष्टासुरमारितः कण्ठवलितो न पतिः // ] तदिदं छलिकमेव किन्नरविषयं सम्पा // हल्लीसकं यथा'चन्दणधूसरअं आहुलिअलोअणअंहासपरम्मुहअं णीसासकिलालिअम् / दुम्मणदुम्मणअंसकामिअमण्डणअंमाणिणिआणणअंकिंतुह्मकरट्ठिअअम् [चन्दनधूसरमाकुलितलोचनं हासपराङ्मुखं निश्वयसिक्लेशितम् / दुर्मनसां दुर्मनस्कं संक्रामितमण्डनं मानिन्याननं किं तव करस्थितम् // ]
SR No.004397
Book TitleSarasvatikanthabharanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhareshvar Bhojdev, Kedarnath Sharma, Vasudev L Shastri
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1934
Total Pages894
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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