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________________ [ 65 98 पद्यों में निर्मित यह स्तोत्र महाकाव्य के किसी सर्ग की स्मृति दिलाता है / प्रारम्भ के पद्य उपजाति में निबद्ध हैं, जब कि अन्तिम 12 पद्यों में स्रग्धराछन्द का प्रयोग हया है। अन्त के ये पद्य 'सूर्यशतक' और 'चण्डीशतक' की रचनाशैली का स्मरण कराते हैं क्यों कि इनमें दीर्घ समास-शैली एवं अद्या वद्या, नद्याः सद्यः, माचे नाचे, सेवा हेवा, सेकच्छेक, मोहापोहा जैसी प्रानुप्रासिक पदावली का मसृणप्रयोग वाचकों के मन को मोह लेता है। ६१वें पद्य के चारों चरणों के ग्रारम्भ में भर्ता पद के साथ-साथ गर्ता, हर्ता, तर्ता और कर्ता पदों का सन्निवेश तथा अन्तिम 7 पद्यों में 'जीयाः' पद से किया गया जयगान बहुत ही प्रौढ काव्यत्व का परिचायक बन पाया है। ___ यह स्तोत्र 'जैन ग्रन्थ प्रसारक सभा' की ओर से वि० सं० 1998 में प्रकाशित 'श्रीयशोविजयवाचकग्रन्थसंग्रह' के पृ० 45 अ-से 46 अ० में पहले मुद्रित हुआ है। (6) श्रीपार्श्वजिनस्तोत्र प्रस्तुत स्तोत्र भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति में लिखा गया है इस में कुल 108 पद्य हैं किन्तु उपलब्ध हस्तलिखित प्रतियों में पाठों के खण्डित हो जाने से प्रारम्भ के 6, 57 से आगे के 5 तथा 67 से आगे के 26 इस प्रकार कुल 37 पद्य अनुपलब्ध हैं। शिखरिणी छन्द की प्रधानता होते हुए भी द्रुतविलम्बित, स्रग्धरा, उपेन्द्रवज्रा, वियोगिनी, भुजङ्गप्रयात, तोटक और पृथ्वी छन्दों का प्रयोग भी हुआ है। ___ 'जैनस्तोत्रसन्दोह' के प्रथमभाग में इस स्तोत्र का नाम 'श्रीगोडीपार्श्वनाथस्तवनम्' दिया है। गोडीपार्श्वनाथ की स्तुति-भक्ति में विभोर श्री उपाध्यायजी ने पूर्वाचार्यों द्वारा निर्मित 'महिम्नः स्तोत्र' तथा लहरीस्तोत्रों को परम्परा का निर्वाह किया है तथा रचना-सौष्ठव के लिए 'अनुप्रास अलङ्कार' के अनेक भेदोपभेदों का पालम्बन लिया है / गङ्गा की निरर्गल बहती हुई धारा के समान वर्ण-प्रवाह से कमनीय 'शिख
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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