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________________ : नरभवतोदिटुंवनयमाला भावार्थ:-त्यां गजदन्तपर्वतनो, वक्षस्कारगिरिपर्वतनो अने यमक अने समकपर्वतनो बधो विस्तार जंबुद्वीपना प्रमाणना पेठे जाणवो // 11 // देवकुराओ उत्तर-दिसंमि उत्तरकुराओ दाहिणओ। पुव्वविदेहाओ पच्छिम पुवो पच्छिमविदेहाओ // 12 // भावार्थ:-देवकुरुथी उत्तरदिशामां अने उत्तरकुरुथी दक्षिणदिशामां, पूर्व विदेहथी पश्चिममां अने पश्चिमविदेहथी पूर्वमांतम्मज्झ देसभाए नवनउइसहस्सजोयणुस्सेहो / जोयणसहस्सगाढो धरणियले मंदरो अस्थि / / 13 / / __ भावार्थ:-ते जंबूद्वीपना बरोबर मध्यभागमां नवाणुहजार (99000) योजननी उंचाइवालो अने पृथ्वीमां हजार (1000) योजन प्रमाणना मूलवालो एकंदर लाख योजननो मंदर (सुमेरु) नामनो पर्वत छे // 13 // तस्सग्गदेसभाए चूला चालीसजोयणपमाणा। सासयचेइयजुत्ता अथित्ति विबुहमहणिज्जा // 14 // भावार्थ:-तेना अग्रभागमां देवपूज्य शाश्वतचैत्ययुक्त चालीस योजनना प्रमाणवाली एक चूला छ // 14 //
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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