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________________ 7 राधावेध दृष्टांतः : भावार्थ:-पूर्णस्नेहथी विरति साथे विलास (कामक्रोडा) करता तेने संयम पुत्र थवा माटे (विरतिने) गर्भ रह्यो, परंतु अविरतिरूप सपत्नीओए (शोक्योए) तेणोमां तेनो (राजानो) राग मंद को // 70 / / संजमनामा पुत्तो जणयगिहे तोए समयए जणिओ। सुविवेउवज्झायाण अंतिए पाढिओ सम्म // 71 / / भावार्थ:-विरतिरूप प्रधानपुत्रीए निजजनकने एटले सम्यक्त्वरूप पोताना प्रधानपिताना घरमा संयमनामा पुत्रने समय आवे जन्म आप्यो अने सुविवेकरूप उपाध्यायं पासे सारी रीते भणाव्यो / 71 / अह जह जियसत्तुनिषो विष्णेओ तह जिणंदनरदेवो / 'निटबई तस्स कण्णा पाणिग्गहणट्ठमुभविओ // 72 // भावार्थ:-जितशत्रु नरपतिना ठेकाणे जिनेंद्रदेव अने तेमनी निर्वृतिरूप कन्याना पाणिग्रहण माटे तैयारो जाणवी // 72 // सुहसामग्गीमंडव-जिणआणापीढतेल्लकंडयं तत्थ / सुयधम्मकम्मथंभो-वरि मंडियमट्टधरचक्कं / / 7 / / भावार्थ:-शुभ सामग्रीरूप मंडप (मांडवो) अने जिनाज्ञारूप बाजोठ उपर रहेल तेल- कुंडं जाणवू, 1 निविइ इत्यपि
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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