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________________ 474 __पोषधविधि। (जूठा) छोडने पर पौषधिक को प्रायश्चित्त लेना पडता है। भोजन करते समय बोलना नहीं चाहिये, कोई चीज लेनी हो तो इशारे से मांगे अथवा पानी से कुल्ला करके बोले / जिसको घर न जाना हो वह पौषधशाला में ही पुत्रादिद्वारा लाया आहार करें / घर जाकर स्थापना स्थापने, इरियावही करने आदि की जो विधि कही है वह पोषधशाला में भोजन करने वालों को करने की जरूरत नहीं। बाकी सब बातें दोनों जगह समान भावसे करनी चाहिये। भोजन के बाद मुख शुद्ध करके 'दिवसचरिमं तिवि. हार' का पच्चक्खाण कर लेना चाहिये और जहां बैठ कर आहार किया हो वहां काजा निकाल लेना चाहिये / भोजन के लिये. घर जाने वालों को भोजन करके तुरंत पोषधशाला आ जाना चाहिये और सबको आहार करने के बाद इरियावाही कर 'जगचिन्तामणि' से लेकर 'जयवीयराय' पर्यन्त चैत्यवन्दन करना चाहिये / १-आज कल यही प्रवृत्ति अधिक चल रही है इस लिये विधि में लिखना पडा है, वास्तव में पौषधिक को दूसरे का लायो हुआ आहार पानी ग्रहण करना ठीक नहीं, स्वयं लाना चाहिये अथवा अन्य पौषधिक से मंगवाना चाहिये, क्योंकि दूसरे अव्रती का लाया हुआ आहार पानी ग्रहण करना पोषध का दोष माना गया है।
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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