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________________ 472 पोषधविधि। बाद में स्वमा० इच्छा० 'सज्झाय करूं' 'इच्छं' कह के एक नवकार गिन 'मन्नह जिणाण' सज्झाय करना। फिर खमा० इच्छा 'मुहपत्ति पडिले हुं ?' 'इच्छं' कह मुहपत्ति पडिलेहणा करनी और खमा० इच्छा० पच्चक्रवाण पारुं ?' 'यथाशक्ति' फिर खमा० इच्छा ‘पञ्चक्खाण पायु' 'तहत्ति' कह के दाहिना (जीमना) हाथ मुठिवाल कर चरखला के ऊपर स्थापना और एक नवकार गिनके जो पञ्चखाण किया हो उस का नाम ले कर नीचे का पाठ बोलना "उग्गए सूरे नमुक्कारसहि पोरिसी साढपोरिसी सूरे उग्गए पुरिमड्डमुट्ठिसहिअं पच्चखाण कयु चउविहार आयंबिल, नीवि, एकाशन कयु तिविहार पञ्चक्खाण फासिअं. पालिअं सोहिअं, तीरिअं, किट्टिअं, आराहिअं, जं च न आराहि तस्स मिच्छामि दुक्कडं / " उपर का पाठ बोलने के बाद एक नवकार गिनना। पोरिसी, साढपोरिसी, पुरिमढ अथवा इनके साथ आयंबिल, निवी, या एकाशन का पञ्चक्खाण किया हो वे ऊपर के पाठ से अपने पञ्चक्खाण पारें, परंतु जिनके तिविहार उपवास हो वे नीचे के पाठ से अपना पच्चक्खाण पारें- . "सूरे उग्गए उपवास कों तिविहार, -पोरिसी-साढ पोरिसी पुरिमड्ढ मुट्टिसहिअं पच्चक्खाण कयु पाणाहार, पञ्च
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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