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________________ __ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 443 था। यह वृद्धि पञ्चमी के दिन अन्तिम सीमा को पहुंच गयी थी, क्योंकि महोत्सव का आखिरी दिन यही था। द्वितीय वैशाखशुदि 4 के शामको गोल में कम से कम 20000 वीस हजार मनुष्यों की संख्या थी और यह संख्या प्रायः जैन महमानों की थी। नगर भर के घर, मकान, चोकी, चबूतरा सब मनुष्यों से ठसाठस भरे हुए थे। इनके उपरान्त सेवक, भोजक, जति आदि याचकों ने अपने डेरे सूकडी नदी के तट पर और उसके भीतर जमाये थे। सेंकडों व्यापारी अपनी अपनी दुकानें चौकमैदानों में लगा कर जमे हुये थे / पंचमी के दिन चतुर्थी की जनसंख्या में पर्याप्त (काफी) वृद्धि हुई / इसमें मुख्य संख्या अन्य वर्ण के मनुष्यों की थी और वह बारह तेरह हजार से कम न होगी / जैनों की संख्या में आज दो तीन हजार की और वृद्धि हुई होगी। जैन और जैनेतर मिलकर आज की जनसंख्या 35000 पेंतीस हजार के आस पास थी। आज गोलनगर में तो क्या उस के बाहर भाग में भी मनुष्यों की इतनी भीड थी कि चलने को मार्ग नहीं मिलता। यद्यपि इस मनुष्य संघ की संख्या निश्चित रूप से नहीं की गयी थी, तथापि उस दिन के भोजन के उठाव के ऊपर जनसंख्या कूती गई थी जो पेंतीस हजार के लगभग होना पाया गया था / उस दिन गोल की पन्द्रह 15 (जालोर की 18 // ) कलसी की लापसी पकायी गयी थी। महाजनों का खुराक अन्य लोगों से कम होता है और वे 1 कलसी की लापसी में
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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