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________________ - श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 429 वह जो नाचती, गाती और संवाद करती उस से सभा चित्र लिखित सी हो जाती और वहां से उठने का मन नहीं करती। द्वितीय-वैशाखवदि 14 के दिन श्रीपाश्वनाथ विद्याभवन -तीखी (मारवाड) की संगीतमण्डली भी वहां आ पहुंची और तीन दिन तक अपने नृत्य, गान और विविधकलापदर्शन पूर्वक भगवान की भक्ति करती रही। तीखीमंडली तीन दिन के उपरान्त दूसरे गांव चली गयी थी परन्तु पालीताणामण्डली तो आखिर तक वहां रह कर भगवान की भक्तिद्वारा मनुष्यों का मनोरंजन करती रही। 28 श्रीपुज्यधरणीन्द्रसूरिजी का आगमन उत्सव के दिनों में जयपुर की खरतरगच्छीयगादी के युवाचार्य श्री धरणीन्द्रसूरिजी गोल से ४-५-कोश पर ही थे, परन्तु इस बात की महाराजसाहब को या गोल के श्रीसंघ को खबर नहीं थी, इस कारण उन्हें आमंत्रण नहीं दिया जा सका, सूरिजी बाकरा से रेवतडा पधारे और वहां से उन के कोटवालजी और एक अन्य यतिजी महाराजसाहब के पास आये और.श्रीपूज्यजी के समाचार और उन की गोल पधारने की इच्छा प्रदर्शित की / महाराज साहबने उसी समय गांव के४ पंचो को बुलाया और श्री पूज्यजी को कुंकुमपत्री देने का
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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