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________________ .. श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 359 चेतन उपदेश पद ( राग धन्याश्री) चेतन जो तूं ज्ञान अभ्यासी, आप ही बांधे आप ही छोडे, निजमति शक्ति विकासी / चेतन० // 1 // जो तूं आप स्वभावे खेले, आशा छोडी उदासी। सुर-नर-किन्नर-नायकसंपत्ति, तो तुज घरकी दासी / - चेतन० // 2 // मोहचोर जनगुण धन लूटे, देत आस गल फांसी / आशा छोड उदास रहे जो, सो उत्तम संन्यासी / चेतन०॥३॥ जोग लइ पर आश धरत है, याही जगमें हांसी / तू जाने मैं गुणकुं संचुं, गुण तो जावे नाशी / चेतन० // 4 // पुद्गल की तूं आश धरत है, सो तो सब ही विनाशी / तूं तो भिन्न रूप है उन से, चिदानंद अविनाशी / चेतन० // 5 // धन खरचे नर बहुत गुमाने, करवत लेवे कासी। तो भी दुःख को अंत न आवे, जो आशा नहीं घासी। चेतन०॥६॥ सुख जल विषमविषय तृष्णा, होत मूढमति प्यासी / विभ्रम-भूमि भई पर-आसी, तूं तो सहज विलासी / चेतन० // 7 // याको पिता मोह दुःख भ्राता, होत विषयरति मासी / भव सुत भरता अविरत पानी, मिथ्यामति है हांसी / चेतन०॥८॥
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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