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________________ 342 4 सज्झायसंग्रह मणि मुक्ताफल मुगट, विराजे हेमना / सा०, अमे सजीये सोल शणगार, के पिउरस अङ्गना / सा० // 4 // जे होय चतुर सुजाण के, कदीय न चूकशे सा०, एहवो अवसर साहिब, कदीय न आवशे सा० / इम चिंते चित्त मझार, नन्दीषेण वाहलो सा०, रहेवा गणिकाने धाम के, थइने नाहलो सा० // 5 // ढाल तीसरी भोगकरम उदय तस आव्यो, शासन देवीये संभलाग्यो, हो मुनिवर वैरागी / ' रह्यो बार बरस तस आवासे, वेष मेल्यो एकणपासे, हो मुनिवर० // 1 // दश नर प्रतिदिन प्रतिबूझे, दिन एक मूरख नवि बूझे, हो मुनि / बूझवतां हुई बहु वेला, भोजन नी थइ अवेला हो मुनिवर० // 2 // कहे वेश्या उठो स्वामी, एह दशमो न बूझे कामी, हो मुनिवर० / वेश्या वनिता कहे धसमसती, आज दशमा तुम ही ज हसती, हो मुनि० // 3 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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