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________________ 326 4 सम्झायसंग्रह नदीमांहे निश दिन रहे पण, पाषाणपणुं नवि जाय / .. लोहधातु टंकण जो लागे, अग्नि तुरत झराय / मू०॥५॥ कागकण्ठमां मुक्ताफलनी, माला ते न धराय / चन्दन चर्चित अंग करीजे, गर्दभ गाय न थाय / मू० // 6 // सिंह चरम कोइ सियालसुतने, धारे वेष बनाय / सियालसुत पण सिंह न होवे, सियालपणुं नही जाय। मू० // 7 // ते माटे मूरखथी अलगा, रहे ते सुखीया थाय / उखर भूमि बीज न होवे, उलटुं बीज ते जाय / मूरखने० // 8 // समकितधारीसंग करीजे, भवभयभ्रांति मिटाय / मयाविजय सद्गुरु सेवाथी, बोधिबीज सुख पाय / मूर० // 9 // लोभ की सज्झाय लोभ न करिये प्राणीया रे, लोभ बूरो संसार / लोभ समो जगमा नही रे, दुर्गतिनो दातार भविकजन, लोभ बूरो संसार / करजो तुमे निरधार भवि० जिम पामो भवपार / भवि० // 1 // .. अतिलोभे लक्ष्मीपति रे, सागर नामे शेठ / पूरपयोनिधिमां पडयो रे, जइ बेठो तस हेठ / भविक० // 2 // सोवनमृगना लोभथी रे, दशरथ सुत श्रीराम / '
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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