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________________ . श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 321 छोड्यां मात पिता वली, छोड्यो सहु परिवार जी। ऋद्धि सिद्धि रे मैं तो तजी दीधी, मानी सघलु असार जी। छेटी रही रे कर वात तूं // 7 // जोग धर्यो रे अमे साधुनो, छोडयो सघलानो प्यार जी। मात समान गणुं तने, सत्य कहुं निरधार जी। __ छेटी रही० // 8 // चार बरसनी प्रीतडी, पलमां तूटी जाय जी। पस्तावो पाछलथी थशे, कहुं लागीने पाय जी / ___जोग रे० // 9 // नारीचरित्र जोइ नाथ जी, तुरत छोडशो जोग जी। माटे चेतो प्रथम तमे, पछी हसशे लोक जी। .. जोग रे० // 10 // चाला जोइ तारा सुन्दरी, डगुं नही हुं लगार जी। काम शत्रु कबजे कर्यो, जाणी पाप अपार जी। . छेटी रही रे गमे ते करो // 1 // छेटी रही रे गमे ते करो, मारा माटे उपाय जी। पण तारा सामुं हुं जोउं नही, शाने करे छे हाय जी / छेटी रही रे // 12 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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