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________________ .288 3 स्तवनसंग्रह प्रभु गुण गायन सुसंगी सुसंगी सुसंगी प्रभु मिल गये, सफल भये मोरे नैन। सुसंगी० // 1 // एक तो मैं दरिसन, मैं दरिसन, मैं दरिसन प्यासी, दरिसन विना नही चेन / सुसंगी प्रभु० // 2 // एक तो मैं पापी, मैं पापी, मैं पापी हूं प्राणी / तारण वाले भगवान् / सुसंगी० // 3 // एक तो मैं माया, मैं माया, मैं माया का लोभी, झूठी माया मेरी जान / सुसंगी प्रभु०॥४॥ एक तो मैं आया, मैं आया, मैं आया तोरे चरणे, जैनमंडली गुण गाय / सुसंमी प्रभु मिल गये // 5 // जिनप्रतिमास्थापनास्तवन . श्री जिनप्रतिमा हो जिनसरखी कही, दीठा आणंद अंग / समकित बिगडे हो शंका कीजंता, जिम अमृत विष संग श्री० // 1 // आज नहीं कोई तीर्थकर इहां, नहीं कोई अतिशयर्वत / जिनप्रतिमानो हो एक आधार छे, आपे मुक्ति एकत। श्री० // 2 // सूत्र सिद्धांत हो तर्क व्याकरण भण्या, पंडित पण कहे लोक /
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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