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________________ ___ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 251 मारे जन्म-मरणनो जोरो, तें तो तोडयो तेहनो दोरो / मारो पासो न मेले राग, तुमे प्रभुजी थया वीतराग / सु०॥५॥ ____मने मायाए मूक्यो पाशी, तुं तो निरबंधन अविनाशी / हुं तो समकितथी अधूरो, तुं तो सकल पदारथे पूरो / सु०॥६॥ म्हारे छो तूं ही प्रभु एक, त्हारे मुज सरिखा छे अनेक / हुं तो मनथी न मूकुं मान, तुं तो मानरहित भगवान / सु० // 7 // ___मारुं कीधुं ते शुं थाय, तुं तो रंकने करे राय / एक करो मुज महेरबानी, म्हारो मुजरो लेजो मानी / सु० // 8 // एक वार जो नजरे निरखो, तो करो मुजने तुम सरिखो। जो सेवक तुम सरिखों थाशे, तो गुण तुमारा गाशे। सु० // 9 // भवोभव तुज चरणनी सेवा, हुं तो मागुं देवाधिदेवा / सामु जुओने सेवक जाणी, एहवी उदयरत्ननी वाणी // सु०॥११॥ श्री.शांतिनाथं स्तवन क्षण क्षण सांभरो शांति सलूणा, ध्यान भुवन जिनराज परंणा, क्षण आं। शांतिजिणंद के नाम अमीसे, उलसित होत हम रोम वपुना, क्षण / भव चोगानमें फिरते पायो, छोडत मैं नहीं चरण प्रभुना / क्षण // 1 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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