SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 222 3 स्तवनसंग्रह नाभिनंदन जगवंदन प्यारो, जगगुरु जग जयकारी / रूपविबुधनो मोहन पभणे, वृषभलंछन बलिहारी हो प्रभुजी ओलंभडे० // 7 // श्रीआदिजिनस्तवन ___आदि जिणंद प्रभु अरजी लीजे, शिवरमणी सुख दीजे रे। शुभ नजरे करी साहिब मुजने, दरिसन वेल्हा दीजे रे // साहिब प्यारो रे, साहिब प्यारो मुजने तारो, भवोदधिपार उतारो रे / साहिब प्यारो रे // आंकणी // 1 // ___पांचे आठे मुजने पीडयो, नर्क निगोद नचायो रे। काल अनादि कुमति संगे, जन्म मरण दुख पायो रे। साहिब० // 2 // - मोहराजानो मत्री मलियो सोल' संगाते भलीयो रे / तृष्णा तरुणी आणी मेली, काम कीचडमें कलीयोरे॥साहिव॥३॥ तेरे बावीस तेतीस टाली, सत्तावन छटकायारे / दश चोरासी दूर करीने, नाभिनंदन ध्यायारे // साहिब० // 4 // पावटापुरमें ऋषभ जिनेश्वर, भेट्या मन शुद्ध भावे रे / आदिजिननुं समरण करतां, कीर्तिचंद्र सुख पावे रे // साहिब० // 5 // .. श्री आदिजिनस्तवन . प्रथम जिनेश्वर प्रणमिये, जास सुगंधी रे काय / कल्पवृक्ष परे तास इंद्राणी नयन जे, भुंग परे लपटाय / / 1 / /
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy