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________________ 156 5 विविध विचार अश्विनी, मृगसिर, पुनर्वसु आदि 9 नक्षत्रों का समुदाय, देवगण, भरणी आदि 9 नव का मानवगण और कृत्तिका आदि नव का राक्षसगण / दोनों व्यक्तियों के नक्षत्रों का एक गण होना अच्छा है, एक का देव दूसरे का मानवगण हो वहां तक भी साधारणतया ठीक है, परन्तु एक का देव दूसरे का राक्षस होना कलहकारी है और एक का मानव दूसरे का राक्षस गण मृत्युकारी होता है / जैसे अश्विनी नक्षत्र घाले का देवगण है और कृत्तिका नक्षत्रवाले का राक्षस जो कलहकारी है। इस लिये इन में गणमेल नहीं कहा जायगा / इस कारण अश्विनी और कृत्तिका नक्षत्रवालों का संबन्ध गण की अपेक्षा से अच्छा नहीं है। 3 राशि राशि का तात्पर्य नक्षत्रों के समुदाय से है। कुल 27 नक्षत्र हैं और 12 राशि, अत एव 2 / सवा दो नक्षत्रों का 1 एक राशि होगा / जैसे 1 अश्विनी 2 भरणी और कृत्तिका का प्रथम एक चरण मिलकर पहला मेष राशि होता है, इसी प्रकार सवा दो दो नक्षत्रों का एक एक राशि गिनने से 27 नक्षत्रों के 12 राशि होते हैं। ____ इन राशियों में से एक व्यक्ति के राशि से दूसरे व्यक्ति का राशि दूसरा या बारहवाँ नौवां या पांचवाँ छठा या आठवाँ हो तो वह शुभ नहीं गिना जाता, इन को क्रमशः दूआ बारह
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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