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________________ अनंगपबिट्ठसुत्ताणि. आहारेजा, छट्ठीए कप्पइ सत्त दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा, सत्तमीए कप्पइ अट्ठ दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा, अट्ठमीए कप्पइ णव दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा, णवमीए कम्पइ दस दत्तीओ भोयणस्स जावणो आहारेजा, दसमीए कम्पइ एगारस दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा एगारसीए कप्पइ बारस दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारज्जा, बारसीए कप्पइ तेरस दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा, तेरसीए कप्पइ चउद्दस दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा, चउद्दसीए कप्पइ पण्णरस दत्तीओ भोयणस्म पडिगाहेत्तए, पण्णरस पाणगस्स पडिगाहेत्तए, सव्वेहि दुप्पयचउप्पय जाव णो लभेजा णो आहारज्जा, पुणिमाए अभत्तढे भवइ, एवं खलु एसा वइरमज्झा चंदपडिमा अहासुतं अहाकप्पं जाव अणुपालिया भवइ // 273 // पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तंजहा-आगमे सुएं आणा धारणा जीए / जत्थेव तत्थ आगमे सिया, आगमेणं. ववहारं पट्टवेजा, णो से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्टवेजा, णो से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारे पट्टवेज्जा, णो से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्टवेज्जा, णो से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्टवेजा, एएहिं पंचहिं ववहारेहिं ववहारं पट्टवेजा, तंजहा-आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं, जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा तहा ववहारे पट्टवेजा, से किमाहु भंते ? आगमवलिया समणा णिग्गंथा, इच्चेयं पंचविहं ववहारं जया जया जहिं जहिं तहा तहा तहिं तहिं अणि सिओवस्सियं ववहारं ववहारेमाणे समणे णिग्गंथे आणाए आराहए भवइ // 274 // चत्तारि पुरिस[जा]जाया पण्णत्ता, तंजहा-अट्ठकरे णामं एगे णो माणकरे, माणकरे णामं एगे णो अट्ठकरे, एगे अट्ठकरे वि माणकरे वि, एगे णो अट्ठकरे णो माणकरे // 275 // चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा-गणट्ठकरे णामं एगे णो माणकरे, माणकरे णामं एगे णो गणट्टकरे, एगे गणटकरे वि माणकरे वि, एगे णो गणट्ठकरे णो माणकरे // 276 // चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं०-गणसंगहकरे णामं एगे णो माणकरे, माणकरे णामं एगे णो गणसंगहकरे, एगे गणसंगहकरे वि माणकरे वि, एगे णो गणसंगहकरे णो माणकरे // 277 // चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा-गणसोहकरे णामं एगे णो माणकरे, माणकरे णामं एगे णो गणसोहकरे, एगे गणसोहकरे वि माणकरे वि,
SR No.004389
Book TitleAnangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, agam_vrushnidasha, & agam
File Size13 MB
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